अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता अंतर्मना साधना महोदधि आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि
– मनुष्य के जीवन में तीन चीजों का बड़ा महत्व है –
संपत्ति, सन्मति, सद्कृति। संपत्ति मनुष्य को प्रतिष्ठा प्रदान करती है। सन्मति प्रभाव और सद्कृति परलोक सुधारती है। मनुष्यों को अपना उच्चारण और आचरण, दोनों सुधारने चाहिए क्योंकि एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है और ‘ एक तकदीर ’ तस्वीर से भी बढ़कर।
– भारत गौरव अंतर्मना सन्त ने कहा-
दुनिया में कोई कुछ पाता है, कोई कुछ पाता है और कोई-कोई बहुत कुछ ही पा लेता है, मगर सबकुछ कोई नहीं और कभी नहीं पाता। अगर दुनिया और दुनियादारी में सबकुछ मिलने लग जाये तो फिर तीर्थंकर महावीर राजपाठ क्यों छोड़ते? भगवान ऋषभदेव महलों को छोड़कर वनों-जंगलों में क्यों भटकते फिरते? गौतम बुद्ध सन्यासी क्यों बनते? रामचन्द्र जी 14 वर्ष का वनवास क्यों स्वीकर करते? सबकुछ पाने का यहां एक ही रास्ता है – सबकुछ छोड़ देना। भगवान महावीर कहते है- ईश्वर को पाने के लिए नश्वर को छोड़ना परम आवश्यक है। ईश्वर सबकुछ है। उस सबकुछ को पाने के लिए दुनिया का सबकुछ लुटा देना पड़ता है। प्रकृति का नियम है कि तुम कुछ दोगे तो तुम्हें ‘कुछ’ मिलेगा। तुम बहुत कुछ छोड़ोगे तो ‘बहुत कुछ’ मिलेगा और यदि उस सबकुछ (ईश्वर) के लिए तुमने दुनिया का सबकुछ (नश्वर) छोड़ा तो ही तुम्हें सबकुछ मिलेगा। लेकिन प्रश्न यह है कि इतनी हिम्मत यहां कितने लोगों में है? हमसे तो एक समय की चाय भी नहीं छूटती। दोपहर में समय पर चाय न मिले तो सरदर्द हो जाता है। रात में तकिये के बिना नींद नहीं आती है। पर ख्याल रखें ‘हरि’ को पाने के लिए बाहर के हीरे-मोती छोड़ने ही पड़ते हैं। तुम ‘जौहरी’ हो। तुम वही हो जो हरि है इसलिए तुम जौहरी हो। ‘जौहरी बनो, पंसारी मत बनो’ । पंसारी सारे दिन पसारा करता है लेकिन उसे मिलता कुछ नहीं है।