जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;
को अगर जनम दे सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …
आज काल की विडंबना से ;
नारी के अधिकार गए …
अधिकारों के दाता प्रभु भी ;
अब तो मोक्ष सिधार गए …
जो नारी चंदनबाला बन ;
प्रभु को पडघा सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …१
चौके में तो माँ बहने ही ;
भोजन शुद्ध बनाती है …
यदि अशुद्ध है तो वो कैसे ;
काया शुद्ध बताती है …
सम्यक्त्वी बन नारिवेद का ;
छेदन जो कर सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …२
व्यसनी पुरुष अभिषेक करे ;
जबकि उनकी आदत गंदी …
फिर भी शीलवती नारी पर ;
कैसे कर दी पाबंदी …
सफेद साडी धारण कर जो ;
महाव्रती बन सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …३
खुद अशुद्ध है तो वो कैसे ;
वेदी शुद्धि करती है …
घटयात्रा में घट लेकर क्यों ;
तीर्थों का जल भरती है …
जो नारी शची बनकर प्रभु का ;
पहला दर्शन करती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …४
हर नारियां है अशुद्ध तो ;
घटयात्रा में पुरुष चलें …
वरना उनको उनका पूरा ;
आगमोक्त अधिकार मिले …
जो सुवर्ण सौभाग्यवती बन ;
विधिविधान कर सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …५
प्राचीन ग्रंथों का प्रमाण दो ;
कोई तो मुझको आकर …
जो मुझको झुटलादे उसका ;
बन जाऊंगा मैं चाकर …
जो माता मरुदेवी त्रिशला ;
ऐरादेवी बनती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …६
ओ माताओं जग जाओ ;
वरना सर्वस्व गंवा दोगी …
अभिषेक के जैसे आगे ;
दर्शन भी ना पाओगी …
‘चंद्रगुप्त’ कहता जो शची बन ;
परभव मुक्ति वरती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …७
जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;
को अगर जनम दे सकती है …
वो नारी अभिषेक प्रभु का ;
कैसे ना कर सकती है …
:- रचनाकार :-
आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी के
सुयोग्य शिष्य मुनिश्री चंद्रगुप्तजी द्वारा रचित नारी-अभिषेक पर सुंदर काव्य