आजकल मुनिराजों, आचार्यों, भगवंतों के जन्म दिवस को अवतरण दिवस, जन्म जयंती आदि विभिन्न संज्ञाओं से पुकारा जा रहा है। जिस पर कुछ चर्चाएं भी चल रही हैं, कि हमें क्या कहना चाहिए और क्या नहीं?
मंगलाष्टक में अवतार शब्द का प्रयोग हुआ है ….
यो गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो,
यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक्—
यद्यपि सिद्धांततः जैन दर्शन में अवतारवाद नहीं है जैसा अन्य परंपरा में प्रयुक्त होता है कि ईश्वर स्वयं जीवों के कल्याण के लिए और दुष्टों के विनाश के लिए धरती पर पुनः जन्म या अवतार लेते हैं ।
जैन धर्म में जो परमात्मा हैं वे पुनः संसार चक्र में नहीं आते और न अवतरित होते हैं ।
किन्तु शाब्दिक और साहित्यिक दृष्टि से ( न कि सैद्धांतिक दृष्टि से ) अवतार शब्द का प्रयोग जैन साहित्य में कई स्थानों पर होता है ।
जैसे सूत्रावतार, श्रुतावतार आदि ।
अच्छे शब्दों में कहें तो सभी चूंकि स्वर्गादि से अवतरित ही हुए हैं अतः अर्थ की दृष्टि से भी और साहित्यिक प्रयोग की दृष्टि से भी अवतार शब्द का प्रयोग करने में उतनी समस्या नहीं होनी चाहिए ,अगर वह अवतारवाद की मान्यता से रहित है तो ।
किन्तु लोक में शब्द की अभिधा शक्ति ज्यादा चलती है और भ्रम भी जल्दी खड़े हो जाते हैं । प्रायः लोग शब्द के अर्थ को रूढ़ि से ही ग्रहण करते हैं । अतः अवतार जैसे सुंदर साहित्यिक शब्द प्रयोगों से जनसामान्य में मान्यता और सिद्धांत की हानि होने की संभावना ज्यादा प्रबल रहती है ।
अतः अवतरण दिवस जैसे शब्दों का प्रयोग करने से अवश्य बचना चाहिए ।
डॉ. अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली