हमें कोरोना वायरस से सतर्क रहना है, सभी नियमों का पालन करना है लेकिन भयभीत नहीं होना है, घबड़ाना नहीं है। कोरोना के साथ संघर्ष के लिए जो आत्मबल चाहिए, भय-चिंता और अवसाद कमजोर बनाता है। भय, चिंता और अवसाद कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस है। जैन दर्शन का शाश्वत सिद्धान्त हमें सभी प्रकार के भय और चिंता से दूर करके हर परिस्थिति से विवेक और पुरुषार्थ पूर्वक लड़ना सिखाता है और हमारा आत्मबल मजबूत करता है। जो-जो देखी वीतराग ने सो-सो होसी वीरा रे अनहोनी सो कबहूं न होसी काहे होत अधीरा रे प्राकृत भाषा के प्राचीन आगम में दो गाथाएं ऐसी आती हैं जो हमें भयमुक्त बनाती हैं।
जं जस्स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि।
णादं जिणेण णियदं जम्मं वा अहव मरणं वा।।
तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि।
को सक्कदि वारेदुं इंदो वा तह जिणिंदो वा।।
कत्तिकेयाणुवेक्खा/गाथा ३२१-३२२
अर्थात , जिस जीव के जिस देश में, जिस काल में, जिस विधान से, जो जन्म अथवा मरण जिनदेव ने नियत रूप से जाना है, उस जीव के उसी देश में, उसी काल में, उसी विधान से वह अवश्य होता है। उसे इंद्र अथवा जिनेन्द्र कौन टाल सकने में समर्थ है? अर्थात कोई नहीं है।
प्रो. डॉ अनेकांत कुमार जैन, नई दिल्ली