संक्षिप्त ऐतिहासिक परिचय👇
अनेक शताब्दियों पूर्व पास के खेतों में भगवान श्री पार्श्वनाथ की मनोहारी प्रतिमा प्राप्त हुई थी,प्रतिमा पर सम्वत या अन्य कोई उल्लेख उत्कीर्ण नही है जिससे यह माना जाता है कि यह प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी के समय से पूर्व चतुर्थ कालीन है,श्री समाज ने सैकड़ो वर्ष पूर्व प्रतिमा जी को आज जहाँ गर्भगृह है उसी डेरी पर स्थापित कर निकट ही नया भव्य मन्दिर बनाया किन्तु अथक प्रयास के बावजूद भी वह प्रतिमा जी उस डेरी से हिली ही नही जिससे उसी डेरी को गर्भगृह युक्त कर दूसरा वही मन्दिर बनाया गया। इसी कारण से वहाँ दो बड़े बड़े जिनालय वहाँ वर्षो से स्थित है।
मान्यतानुसार-
एक बार लुटेरे जब चोरी की नीयत से मन्दिर में घुसकर भगवान के छत्र आदि चुराने के लिए जैसे ही हाथ डालने लगे तत्काल ही वे लुटरे अंधे हो गए और वे रोने लगे,भगवान के समक्ष क्षमा याचना कर प्रायश्चित करने लगे जिससे उनकी रोशनी वापस आ गयी। तथा समूचे क्षेत्र के लोगो को जब जीवन मे भयंकर संकट या व्याधि आती,पाप रूपी अंधकार से कही भी रास्ता नही मिल रहा होता ऐसे में वे लोग जब इस क्षेत्र में भगवान पार्श्वनाथ के दरबार मे आकर भक्ति आरधना करते तो उनके जीवन मे पुण्य-शांति रूपी रोशनी दिखाई देने लगती इसी लिए इस तीर्थ का नाम अंदेश्वर के रुप में जग विख्यात हो गया अर्थात अंधों को राह दिखाने वाले ईश्वर
राजस्थान-मध्यप्रदेश व गुजरात के ऐसे हजारो हजार परिवार है जिन्होंने भगवान पार्श्वनाथ जी के इस दरबार से अपने जीवन मे शांति व सुख को पाया है
हाल ही मे जब चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज वर्षायोग के लिए असमंजस्य की स्थिति में थे,सिपुर,शेषपुर,अडिन्दा व अंदेश्वर आदि चारो जगहों से भरपूर भक्ति से समान निवेदन याचना थी ऐसे में गुरुवर किस को स्वीकृति प्रदान करे ऐसी विकट स्थिति थी तब श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ के यक्ष नागकुमार देव ने पूज्य गुरुदेव को श्रद्धा पूर्वक अंदेश्वर वर्षायोग हेतु अनुरोध संकेत दिए तथा हाल ही के कुछ दिन पूर्व जब आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के सानिध्य में तीर्थक्षेत्र के जीर्णोद्धार हेतु सीमांकन जैसे ही पूर्ण हुआ वैसे ही तुरन्त भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के चरण अंगूठे से स्वतः जलाभिषेक होने लगा।
कुशलगढ़ जैन समाज व अध्यक्ष सेठ श्री जयंतीलाल जी के दमदार नेतृत्व में पिछले 40 वर्षों में यह तीर्थ काफी विकसित तो हुआ है ही साथ में दिगम्बर जैन तीर्थो में सबसे अधिक साफ सुथरा व सुविधाओ से युक्त है
इस तीर्थ के चहुँमुखी विकास के लिए अध्यक्ष श्री जयंतीलाल जी सहित श्री जैन समाज कुशलगढ़ ने जो पुरुषार्थ किया है वो अत्यंत प्रशंसनीय है।
महा अतिशयकारी श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ बांसवाड़ा से 40 किमी, दाहोद गुजरात से 64 किमी व रतलाम मध्यप्रदेश से 110 किमी दूर है
इस वर्ष वर्षायोग में इस तीर्थ पर पधारना आपके जीवन का सबसे स्वर्णिम क्षण होगा क्योंकि तीर्थ वन्दना के साथ साथ राष्ट्र गौरव चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के विशाल सन्त संघ के दर्शन का लाभ भी मिल रहा है व ऐसे महान तीर्थ के जीर्णोद्धार में भी अपना योगदान दिया जा सकता है।