गर्भवती माँ ने बेटी से पूछा – क्या चाहिए-? भाई या बहिन–?
बेटी बोली — भाई
माँ – किसके जैसा-?
बेटी – रावण जैसा
माँ – क्या बकती है-?
पिता ने धमकाया — माँ ने घूरकर देखा? गाली देते हुए-?
बेटी बोली — क्यू माँ-? बहन के अपमान पर, राज्यवंश और प्राण लुटा देनेवाला शत्रु, स्त्री को हरने के बाद भी स्पर्श ना करने वाला रावण जैसा भाई आज घर-घर हो, तो मेरे जैसी सभी बहन-बेटियों की शील की सुरक्षा हो सकेगी। माँ सिसक रही थी और पिता आवाक था।
इसलिये इस युग में रावण घर-घर हो तो अच्छा है।
रावण बनना भी, कहाँ आसान था? क्योंकि रावण में अहंकार था, तो पश्चाताप भी था। वासना थी, तो संयम भी था और माता सीता के अपरहण की ताकत थी, तो बिना सहमति पर स्त्री को स्पर्श न करने का संकल्प भी था।
इसलिए मैं कहता हूं – इस युग में रावण घर-घर हो तो अच्छा है। आज व्यक्ति की प्रवृत्ति बुराई के मार्ग में ज्यादा लिप्त है। जीवन चर्या में संयम नहीं है। उसे अपने किये का पछतावा नहीं होता। बल्कि गलती कर, अपने को महान समझता है। राजा रावण में बुराई के साथ अच्छे गुण भी थे।
माता सीता जीवित मिली, ये भगवान राम की ताकत थी..
पर सीता पवित्र मिली, ये रावण की मर्यादा थी..!
हे राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था जो कि दस के दस चेहरे दुनिया के सामने रखता था। आज व्यक्ति का चेहरा कब बदल जाये कोई भरोसा नहीं है। वह अंदर से क्या सोचता है और बाहर क्या करता है, इसका भरोसा नहीं है। रावण की पराजय भगवान राम-लक्ष्मण से नहीं, खुद के भाई विभीषण से हुई।
आज का जन-मानस उपवास की कठिन साधना कर भूख प्यास व गर्मी तो सहन कर लेता है, पर अपने घर के व्यक्ति की दो बात सहन नहीं कर पाता है। इसलिए रामायण को पढ़ने के साथ अब राम को जीने का समय आ गया है।
राजा रावण तो व्यर्थ में बदनाम हो गया क्योंकि जो पकड़े गए वो सभी राम निकले।