“राष्ट्रहित के पुरोधा आचार्य महाप्रज्ञ को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया जाना चाहिए” – प्रो. फूलचन्द प्रेमी

आचार्य महाप्रज्ञ के महाप्रयाण दिवस पर जैन विश्व भारती संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार

लाडनूं। तेरापंथ धर्म संघ के दसवें आचार्य एवं प्रख्यात दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ के 12वें महाप्रयाण दिवस के अवसर पर जैन विश्व भारती संस्थान विश्वविद्यालय के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग के तत्वावधान में दिनांक 7 मई 2021, शुक्रवार को राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। माननीय कुलपति प्रो. बच्छराजदूगड़ जी के संरक्षकत्व में आयोजित इस राष्ट्रीय वेबिनार में देश की ख्यातिलब्ध हस्तियों ने हिस्सा लिया और आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति अपनी भावांजली व्यक्त की ।

वेबिनार में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के जैनोलोजी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. फूलचंद जैन प्रेमी ने अपने वक्तव्य में आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व की विशेषताओं व उनकी कृतियों के बारे में प्रकाश डालते हुए उनके विविध अवदानों का उल्लेख किया। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ को विश्व स्तर का दार्शनिक एवं संत पुरूष बताते हुए उन्हें’भारतरत्न’ से सम्मानित किए जाने की अपील की, साथ ही प्रो. जैनने आचार्य महाप्रज्ञ की जीवनी और योगदान को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने का सुझाव प्रस्तुत किया ।

जैविभा के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने आचार्य महा प्रज्ञकोसंत, दार्शनिक, कवि, अर्थशास्त्री आदि उपमाएं देते हुए कहा कि बहुमुखी विशाल साहित्य की रचना के बावजूद भी वे अपने सर्वस्व के लिए गुरूगणाधिपति आचार्य तुलसी को महत्व देते थे, जोउनका अद्भुत समर्पण था। प्रो. त्रिपाठी ने आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञ की गुरू-शिष्य की जोड़ी को विरल जोड़ी बताया तथा कहा कि महाप्रज्ञ ने आचार्य तुलसी के विचारों को क्रियान्वित करने का सफल कार्य किया था।

स्कूल ऑफ मीडिया स्टडीज़, जयपुरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. के.के. रट्टूने आचार्य महाप्रज्ञ के संदेश “निज पर शासन फिर अनुशासन” को कोरोना महामारी जैसी कठिन परिस्थितियों में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि “यह संदेश कोरोना वायरस की महामारी से मुक्ति के अमोघ साधन हैं। अब तक के दुनिया के कोरोना वायरस के परिदृश्यों का सूक्ष्म अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष निकाला गया है वह संयमही है, यानी निज पर शासन फिर कोरोना पर अनुशासन- नियंत्रण।

अणुव्रत महा समिति के पूर्व राष्ट्रीयअध्यक्ष डा. महेन्द्रकर्णावट ने अपने सम्बोधन में आचार्य महाप्रज्ञ के संस्मरणों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि महाप्रज्ञने अणुव्रत को आगे बढाया और कहा कि “वेनैतिकता के बिना अहिंसा की सिद्धि और अहिंसा के बिना नैतिकता के अस्तित्व को मुश्किल मानते थे”। उन्होंने हर व्यक्ति को सरल, समर्पित और विनम्र बनते हुए महाप्रज्ञ के चिंतनको आत्मसात करने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि हमें महाप्रज्ञ के साहित्य को समाज में जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।

वेबिनार के समापन में डा. अनेकांत कुमार जैन नई दिल्ली ने महाप्रज्ञरचित प्रसिद्ध कविता“सहज सरल जीवन की पोथी”का सस्वर पाठ किया। उदयपुर विश्वविद्यालय के प्रो. जैनेन्द्र कुमार जैन ने भी अपनी विन्यंजली अर्पित की।

प्रारंभ में संगोष्ठी-संयोजक डॉ. अरिहंत कुमार जैन ने वेबिनार की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की और कहा कि “महान् चिंतक आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी गहन साध कथे, जिन्होंने जन-जन को स्वयं सेस्वयं के साक्षात्कार की क्षमता प्रदान की तथा अपने श्रेष्ठ व्यक्तित्व से अखिल विश्व में खास पहचान बनाई”। वेबिनार निदेशिका प्रो. समणीऋजु प्रज्ञा ने स्वागतवक्तव्य प्रस्तुत करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ के बहु आयामी व्यक्तित्व की विस्तार से चर्चा की एवं उनके द्वादश महाप्रयाण दिवस पर अपनी भावांजली व्यक्त की।

वेबिनार में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वानों एवं शोधछात्रों समेत लगभग 80 से अधिक लोगों की उपस्थिती रही जिनमें डा. बिजेन्द्र प्रधान,डा. प्रगति भटनागर, अब्दुल हमीद मोहिल, अभिषेक चारण, अभिषेक शर्मा, रेहाना गौरी, प्रेक्षासं चेती, डा. पुष्पा मिश्रा, रविना बाजिया, दीक्षिता संघवी, सुनीता कोटेचा, अमृतांशु पांडेय, अंजुला जैन, अनिता चौधरी, डा. इन्दु जैन, नेहा नायक, डा. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डा. रविन्द्र सिंह राठौड़, डा. विनोद कुमार सैनी, डा. गिरीराज भोजक, डा. मनीष भटनागर, हेमलता जोशी, निकिता चौधरी को मलजांगिड़, जसुदेवी चौपड़ा, दुर्गालाल पारीक, महिमा जैन, जागृति चौरड़िय, मोनिका चौरड़िया, मायावती ईशरावां आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजक डा. अरिहंत जैन ने अंत में सभी के प्रति हृदय से आभार ज्ञापित किया।

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