🍁प्रश्न : एक बार शान्तिधारा पूर्ण हो जाने
के बाद अभिषेक कर सकते हैं ? यदि हाँ, तो क्यों ?
🌻उत्तर :– इसका उत्तर सरल है ।
शान्तिधारा श्रीजी की आराधना का समापननहीं है ।उसके उपरान्त पुनः सब क्रियाओं को
विधिवत् करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है ।अभिषेक शान्तिधारा निजी क्रिया है — वह
प्रत्येक जैन श्रावक का व्यक्तिगत धर्म है ।यही कारण है किजब जिनालय में सामूहिक शान्तिधारा होती है तब भी उपस्थित समूह में सब भक्त जन अपना हाथ अलग से झारीपर लगा लेते हैं ।
श्रावकाचारों में श्रावक के छह धार्मिक कर्तव्योंमें पूजा का समावेश है (पद्मनन्दी पंचविंशतिका) ।दिगम्बर जैन परम्परा में जिनपूजा
अभिषेकपूर्वक ही की जाती है (जयधवला १/८२) ।तथा, अभिषेक की समाप्ति पर पूजक
विश्वशान्ति हेतुशान्तिधारा भी करता है ।यह विधि अपाय विचय धर्म्यध्यान के रूप मेकी जाती है ।
बड़े स्थानों पर व्यावहारिक धरातल पर यह
कैसे सम्भव है कि सब के सब एक ही समयपर उपस्थित हो जाए ? यह भी कैसे संभव
है कि आगे-पीछे आने पर कोई जिनभक्त अपनी विधि नअधूरी करे ? समाधान यही है कि कोई भी
भक्त अपनी क्रिया से वंचित न रहे, इस हेतु
सभी को सारी विधि करने का सौभाग्य
मिलना आवश्यक है ।
यहाँ यह आशंका उचित नहीं कि शान्तिधाराके पश्चात् पुनः अभिषेक करने से प्रतिमा कीअविनय तो नहीं होगी ? अविनयभावों के आश्रित है ।कोई भक्त भगवान् की अविनय सपने में भी नहीं कर सकता ।
किसी शास्त्र में प्रतिमा का दूसरी बार
अभिषेक करना पाप नहीं कहा गया है ।दक्षिण के कई जिनालयों में दिन में तीन बार पूरे वैभव के साथ अभिषेक होता है ।महावीर जयंती, अनंत चतुर्दशी आदि के दिन उत्तरापथ में भी सवेरे-शाम अभिषेक होता है जिसमें दूसरा अभिषेक पहले अभिषेक की
शान्तिधारा के पश्चात् ही होता है ।
मान लीजिये, कहीं यह नियमावली हो कि
प्रतिमा पर दोबारा अभिषेक नहीं होगा तो
बताइये यदि कोई मुनि संघ अभिषेकके समय के पश्चात् विहार करके वहाँ आ जाए ।
साधुओं का नियम हो कि अभिषेक देख करही आहार करेंगे तब क्यास्थिति बनेगी ?
क्या उन्हें मना कर दिया जायेगा और भूखा रखा जायेगा ?
आगम-आग्रह आग दो, ज्ञानी जाने मर्म ।
एक जलाती कर्म को, एक जलाती धर्म ॥॥
जिनवाणीपुत्र