आज का विचार

आचार्य विद्यासागर विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय – विद्वत्परिषद्

इन्दौर। 27 फरवरी । श्रमण संस्कृति के महान आचार्य के नाम पर ‘‘आचार्य विद्यासागर विश्वविद्यालय’’ की स्थापना की जाय। ये विचार देश के मूर्धन्य विद्वानों ने एक वर्चुअल मीटिंग में…

Read More

समाज में व्याप्त बोली प्रथा में दान नहीं अपितु द्वेष युक्त प्रतिस्पर्धा, दबाव, प्रलोभन,भ्रष्टाचार,आडम्बर व दिखावा हैं-वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव

विषय -दान वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव द्वारा विभिन्न प्राचीन ग्रंथो द्वारा जारी स्वाध्याय के अंश 1.सबसे श्रेष्ठ व उत्कृष्ट हैं आहरदान 2.आहारदान मे गर्भित हैं चारो दान 3.गुरु…

Read More

संत शिरोमणि गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का आशीर्वाद मुझे सदैव प्रेरित करता रहेगा – डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव

संत शिरोमणि गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का आशीर्वाद मुझे सदैव प्रेरित करता रहेगा… संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रत्यक्ष दर्शन,चर्चा,आशीर्वाद,उनकी धर्म सभा में…

Read More

आचार्य श्री का जीवन ही उनका दर्शन था

समणपरंवरसुज्जंसययसंजमतवपुव्वगप्परदं।चंदगिरिसमाधित्थंणमो आयरियविज्जासायराणं ।। श्रमण परम्परा के सूर्य , सतत संयम तप पूर्वक आत्मा में रमने वाले और चंद्रगिरी तीर्थ पर समाधिस्थ (ऐसे) आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी को हमारा कोटिशः…

Read More

प्राकृत वीर निर्वाण पञ्चक

पाइय-वीरणिव्वाण-पंचगं(प्राकृत वीर निर्वाण पञ्च )प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा । तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।१।। जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े…

Read More

अतिशय योगी के आशीष से देवता भी हुए नतमस्तक

श्री दिगम्बर जैन समाज कुशलगढ़ जो कि अपनी एकता,दृढ़ संकल्प,संगठन व देव-शास्त्र गुरु के प्रति समर्पण के लिए जग विख्यात है,श्री समाज के कर्णधार श्रीमान जयंतीलाल जी सेठ,हंसमुख जी शाह…

Read More

“उत्तम ब्रह्मचर्य – : ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है”

डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव, दिल्ली “आत्मा ब्रह्म विविक्त बोध निलयो यत्तत्र चर्यं पर।स्वाङ्गासंग विवर्जितैक मनसस्तद् ब्रह्मचर्य मुने।।”शास्त्रों में कहा है कि – : ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ निर्मल ज्ञान…

Read More
जिनागम | धर्मसार