भगवान महावीर के प्रति युवाओं की प्रतिबद्धता दर्शाती है कि देश सही दिशा में जा रहा : प्रधानमंत्री

भगवान महावीर के प्रति युवाओं की प्रतिबद्धता दर्शाती है कि देश सही दिशा में जा रहा : प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को महावीर जयंती के अवसर पर 2550वें भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर एक स्मारक टिकट और सिक्का भी जारी किया गया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के समय में भगवान महावीर के मूल्यों के प्रति युवाओं की प्रतिबद्धता दर्शाती है कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि हम 2500 वर्षों के बाद भी भगवान महावीर का निर्वाण दिवस मना रहे हैं और उन्हें यकीन है कि देश आने वाले हजारों वर्षों तक भगवान महावीर के मूल्यों का जश्न मनाता रहेगा। दुनिया में जारी कई युद्धों के बीच हमारे तीर्थंकरों की शिक्षाओं ने एक नई प्रासंगिकता हासिल की है। उन्हीं की शिक्षाओं पर चलते हुए आज भारत विभाजित दुनिया में ‘विश्व बंधु’ के रूप में अपनी जगह बना रहा है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि आप सब तो जानते हैं, चुनाव की इस भागदौड़ के बीच, इस तरह के पुण्य कार्यक्रम में आना मन को बहुत ही शाता देने वाला है। प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज इस अवसर पर मुझे महान मार्गदर्शक समाधिस्त आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का स्मरण होना स्वाभाविक है। पिछले ही वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रागिरी मंदिर में मुझे उनका सानिध्य मिला था। उनका भौतिक शरीर भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन, उनके आशीर्वाद जरूर हमारे साथ हैं।
मोदी ने कहा कि भगवान महावीर का ये दो हजार पांच सौ पचासवां निर्वाण महोत्सव हजारों वर्षों का एक दुर्लभ अवसर है। ऐसे अवसर, स्वाभाविक रूप से, कई विशेष संयोगों को भी जोड़ते हैं। ये वो समय है जब भारत अमृतकाल के शुरुआती दौर में है। देश आज़ादी के शताब्दी वर्ष को स्वर्णिम शताब्दी बनाने के लिए काम कर रहा है। इस साल हमारे संविधान को भी 75 वर्ष होने जा रहे हैं। इसी समय देश में एक बड़ा लोकतान्त्रिक उत्सव भी चल रहा है। देश का विश्वास है यहीं से भविष्य की नई यात्रा शुरू होगी।
उन्होंने कहा कि देश के लिए अमृतकाल का विचार, ये केवल एक बड़ा संकल्प ही है ऐसा नहीं है। ये भारत की वो आध्यात्मिक प्रेरणा है, जो हमें अमरता और शाश्वतता को जीना सिखाती है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि सदियों और सहस्राब्दियों में सोचने का ये सामर्थ्य…ये दूरदर्शी और दूरगामी सोच…इसीलिए ही, भारत न केवल विश्व की सबसे प्राचीन जीवित सभ्यता है, बल्कि, मानवता का सुरक्षित ठिकाना भी है। ये भारत ही है जो ‘स्वयं’ के लिए नहीं, ‘सर्वम्’ के लिए सोचता है। ये भारत ही है जो ‘स्व’ की नहीं, ‘सर्वस्व’ की भावना करता है। ये भारत ही है, जो अहम् नहीं वयम् की सोचता है। ये भारत ही है जो ‘इति’ नहीं, ‘अपरिमित’ में विश्वास करता है। ये भारत ही है, जो नीति की बात करता है, नेति की भी बात करता है। ये भारत ही है जो पिंड में ब्रह्मांड की बात करता है, विश्व में ब्रह्म की बात करता है, जीव में शिव की बात करता है। उन्होंने कहा कि हर युग में जरूरत के मुताबिक नए विचार आते हैं। लेकिन, जब विचारों में ठहराव आ जाता है, तो विचार ‘वाद’ में बदल जाते हैं। और ‘वाद’ विवाद में बदल जाते हैं। लेकिन जब विवाद से अमृत निकलता है और अमृत के सहारे चलते हैं तब हम नवसर्जन की तरफ आगे बढ़ते हैं। लेकिन अगर विवाद में से विष निकलता है तब हम हर पल विनाश के बीज बोते हैं। 75 साल तक आजादी के बाद हमनें वाद किया, विवाद किया, संवाद किया और इस सारे मंथन से जो निकला, अब 75 साल हो गए, अब हम सबका दायित्व है कि हम उससे निकले हुए अमृत को लेकर के चलें।


नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वैश्विक संघर्षों के बीच देश युद्ध-रत हो रहे हैं। ऐसे में, हमारे तीर्थंकरों की शिक्षाएं और भी महत्वपूर्ण हो गईं हैं। उन्होंने मानवता को वाद-विवाद से बचाने के लिए अनेकांतवाद और स्वादवाद जैसे दर्शन दिये हैं। अनेकांतवाद यानी, एक विषय के अनेक पहलुओं को समझना। दूसरों के दृष्टिकोण को भी देखने और स्वीकारने की उदारता वाला। आस्था की ऐसी मुक्त व्याख्या, यही तो भारत की विशेषता है। और यही भारत का मानवता को संदेश है।
उन्होंने कहा कि आज संघर्षों में फंसी दुनिया भारत से शांति की अपेक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि नए भारत के इस नई भूमिका का श्रेय हमारे बढ़ते सामर्थ्य और विदेश नीति को दिया जा रहा है। लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूँ, इसमें हमारी सांस्कृतिक छवि का बहुत बड़ा योगदान है। आज भारत इस भूमिका में आया है, क्योंकि आज हम सत्य और अहिंसा जैसे व्रतों को वैश्विक मंचों पर पूरे आत्मविश्वास से रखते हैं। हम दुनिया को ये बताते हैं कि वैश्विक संकटों और संघर्षों का समाधान भारत की प्राचीन संस्कृति में है।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जैन धर्म का अर्थ ही है, जिन का मार्ग, यानी, जीतने वाले का मार्ग। हम कभी दूसरे देशों को जीतने के लिए आक्रमण करने नहीं आए। हमने स्वयं में सुधार करके अपनी कमियों पर विजय पाई है। इसीलिए, मुश्किल से मुश्किल दौर आए, लेकिन हर दौर में कोई न कोई ऋषि, मनीषी हमारे मार्गदर्शन के लिए प्रकट हुआ। बड़ी-बड़ी सभ्यताएं नष्ट हो गईं, लेकिन, भारत ने अपना रास्ता खोज ही लिया।
इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि आप सबको याद होगा, केवल 10 साल पहले ही हमारे देश में कैसा माहौल था। चारों तरफ निराशा, हताशा! ये मान लिया गया था कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता! भारत में ये निराशा, भारतीय संस्कृति के लिए भी उतनी ही परेशान करने वाली बात थी। इसीलिए, 2014 के बाद हमने भौतिक विकास के साथ ही विरासत पर गर्व का संकल्प भी लिया। आज हम भगवान महावीर का दो हजार पांच सौ पचासवां निर्वाण महोत्सव मना रहे हैं। इन 10 वर्षों में हमने ऐसे कितने ही बड़े अवसरों को सेलिब्रेट किया है। हमारे जैन आचार्यों ने मुझे जब भी आमंत्रण दिया, मेरा प्रयास रहा है कि उन कार्यक्रमों में भी जरूर शामिल रहूं। उन्होंने कहा कि संसद के नए भवन में प्रवेश से पहले मैं ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर अपने इन मूल्यों को याद करता हूँ। इसी तरह, हमने अपनी धरोहरों को संवारना शुरू किया। हमने योग और आयुर्वेद की बात की। आज देश की नई पीढ़ी को ये विश्वास हो गया है कि हमारी पहचान हमारा स्वाभिमान है। जब राष्ट्र में स्वाभिमान का ये भाव जाग जाता है, तो उसे रोकना असंभव हो जाता है। भारत की प्रगति इसका प्रमाण है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए आधुनिकता शरीर है, आध्यात्मिकता उसकी आत्मा है। अगर आधुनिकता से अध्यात्मिकता को निकाल दिया जाता है, तो अराजकता का जन्म होता है। और आचरण में अगर त्याग नहीं है, तो बड़े से बड़ा विचार भी विसंगति बन जाता है। यही दृष्टि भगवान महावीर ने हमें सदियों पहले दी थी। समाज में इन मूल्यों को पुनर्जीवित करना आज समय की मांग है।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए आधुनिकता शरीर है और आध्यात्मिकता उसकी आत्मा है। नई पीढ़ी मानती है कि भारत की पहचान उसका गौरव है। भारत इस बात का प्रमाण है कि जब स्वाभिमान की भावना जागृत हो जाती है तो किसी राष्ट्र को रोकना असंभव हो जाता है।
केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जून राम मेघवाल ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में भगवान महावीर के मूल सिद्धांत जियो और जीने दो का विशेष महत्व है।
प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्य श्री प्रज्ञसागर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज हमारे पास दो ही मार्ग या तो महावीर को चुनें या महाविनाश को। महावीर को नहीं चुने जाने पर यह महाविनाश स्वतः ही निश्चित हो जाता है। इसलिए महाविनाश से निपटने के लिए आज महावीर को चुनना जरुरी बन चुका है। उन्होंने कहा कि शाकाहार और अहिंसा आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इसको अपनाने से वैश्विक समस्याओं से निपटा जा सकता है।


आचार्य श्री ने कहा कि विश्व में शांति की स्थापना करनी है तो जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों को अपनाना होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का धन्यवाद करते हुए कहा कि जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सभी मेहमानों को शाकाहारी भोजन करवाकर उन्हें अपनी मूल संस्कृति से अवगत कराया।
उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी ने जैन धर्म के मूल सिद्धांत और महावीर की अहिंसा पर प्रकाश डाला।
साध्वी श्री अणिमा श्री जी ने इस अवसर पर कहा कि भगवान महावीर सदैव मानवता के महान नायक थे। जब सम्पूर्ण विश्व हिंसा की आग में झुलस रहा था तब महावीर का जन्म संसार में मैत्री,प्रेम और करुणा का संदेश देने के लिए हुआ था।
साध्वी श्री सुलक्षणा जी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी सदैव महिला सशक्तिकरण के पक्षधर और प्रबल समर्थक रहे हैं।
कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने भगवान महावीर की मूर्ति पर चावल और फूलों की पंखुड़ियों से श्रद्धांजलि अर्पित की और स्कूली बच्चों द्वारा भगवान महावीर स्वामी पर “वर्तमान में वर्धमान” नामक नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देखी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने एक स्मारक डाक टिकट और सौ रुपए के सिक्के का भी लोकार्पण किया।

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