जी हाँ चांदखेड़ी के मंदिर,वहाँ की प्राचीन संस्कृति व आदिनाथ भगवान की मनोहारी प्रतिमा की सुरक्षा खतरे में पड़ चुकी है। इसका कारण बना क्षेत्र पर की गयी भारी फोड़ व निर्माण कार्य।
इस संबंध में मेरी खानपुर, सारोला, सांगोद, रामगंजमंडी आदि कस्बो के, तीर्थ से जुड़े बुजुर्गों से बातचीत हुई। कई बातें सामने आयी।
👉सबसे प्रमुख बात जो सामने आयी वह मुख्य प्रवेश द्वार को लेकर आयी। पुराना मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में बस्ती में था कुछ वर्षो पूर्व मुख्य द्वार बदल दिया गया । तीर्थ की सुरक्षा के लिये प्राचीन समय मे बुर्ज (किला नुमा संरचना) बनायी गई थी। नया द्वार बनाने के लिए इस बुर्ज को तोड़ दिया गया। इस बुर्ज की सुरक्षा नही की। बल्कि नव निर्माण के नाम पर जगह जगह से तोड़ा गया जो कि सुरक्षा की दृष्टि से बहुत गलत था। नये मुख्य द्वार का रास्ता बनाने के लिये कंस्ट्रक्शन कार्य करवाया गया जिससे पानी बहाव में रुकावट पैदा हुई है। इसके कारण जब भी ज्यादा बारिश होती है, खेतों व नदी, नालों का पानी सीधा तीर्थ क्षेत्र की परिधि में घुस जाता है। इसके पूर्व इधर की तरफ बुर्ज की मजबूत दीवार थी जिसके कारण पानी बाहर का बाहर बह कर निकल जाता था। इस प्रकार वास्तु के नाम पर क्षेत्र का मुख्य द्वार बदलना खतरनाक साबित हो रहा है।
👉प्राचीन मंदिर व आदिनाथ भगवान के गर्भगृह में भारी परिवर्तन किया गया था। भगवान की वेदी की ऊँचाई प्राचीन समय मे कम थी। वास्तु दोष निवारण के नाम पर वेदी को ऊँचा उठाने के लिये गर्भगृह की खुदाई की गई थी। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मंदिर कमजोर हो गया। एक बुजुर्ग ने बताया कि नव निर्माण के पहले गर्भगृह में कभी भी पानी नही भरता था चाहे जितनी बारिश आये लेकिन अब तो हर बारिश में गर्भगृह में पानी की धाराएँ फूटती है जिसके कारण मोटर चला कर पानी बाहर निकालना पड़ता है। गर्भ गृह में पानी ना हो इसलिए धाराओं का पानी गिरने के लिए नालियां बनाई गई ये भी प्राचीन समय मे नही थी । इतना ही नही अब तो कुछ वर्षों से थोड़ी भी ज्यादा बारिश होते ही गर्भ गृह में एक एक दो दो फिट पानी भर जाता है। जो दो दो तीन तीन रातों तक भरा रहता है। पानी भरे रहने के कारण उसमें अनगनित जीव पैदा हो जाते है।उसमें ही दर्शन पुजन करने वाले भी जाते हैं जिसके कारण उन जीवो की विराधना होती है। दीवारों की सीपेज न दिखे इसलिये दीवारों पर भी पत्थर लगा दिए गए हैं, वास्तव में तो मंदिर में जीर्णोद्धार के नाम पर प्राचीन मंदिर का विध्वंस किया गया था। इस बार तो गृभगृह में 8-10 फिट पानी भर गया था। दिन के समय भी और रात्रि में भी भरा रहा।ऐसे अनगनितजीवों से भरे पानी मे सुधा सागर जी और उनके अन्ध भक्त अभिषेक और शांति धारा करने के लिए घुस गए। जबकि सुधा सागर जीके सिद्धान्त के अनुसार तो रात्रि में पानी ही रुधिर की संज्ञा को प्राप्तहो जाता है। तो उनके इस सिद्धान्त से यह भरा हुआ पानी, रुधिर कुंड की संज्ञा को प्राप्त होगा या नही।
अपने इस भारी दोष को ढकने के लिए, प्रतिमा जी का पानी मे इस प्रकार डूबने को चमत्कार कह प्रचारित किया जा रहा है।
👉गर्भ गृह में चक्रेश्वरी,सरस्वती व अन्य प्रतिमाएं भी नव निर्माण में गायब कर दी।
👉गर्भ गृह में ही विराजित क्षेत्र पाल जी की पूजा अर्चना और दर्शन में रुकावट डालने के लिए गर्भ गृह का मार्ग बदला गया।
👉भट्टारक जी की छतरियों को नुकसान पहुंचा कर भोजन शाला में दबा दिया।
👉कार्यकारिणी के लापरवाही पूर्ण और गैर जिम्मेदाराना तरीके से कार्य करने का दुष्परिणाम अब जैनेतर समाज के लोगों से विवाद के रूप में आया है। ये जैनेतर लोग आदिनाथ भगवान की मनोती मानते हैं, उन्हें पूजते हैं। आज ये लोग जैन समाज को अपना दुश्मन मान रहे हैं और मन्दिर पर पत्थर फेक रहे हैं और तोड़फोड़ पर आमादा हो रहे हैं। जो आज तक चांदखेड़ी वाले बाबा के जयकारे लगाते थे वो अब पत्थर फेंके तो गम्भीर और चिंता जनक है।
आखिर कब तक कार्यकारिणी, वास्तु और पैसों के नाम पर मूर्ख बनती रहेगी और तीर्थ का सौहार्द खत्म कर ,पूर्वजों की विरासत को सहेजने के स्थान पर नष्ट करने का कार्य करती रहेगी। चिंता का विषय है। बुद्धि जीवी समाज मूक दर्शक बन कर देख रहा है,आश्चर्य है।
निवेदक
अनिल कुमार जैन एडवोकेट