परम पूज्य प्राकृताचार्य चतुर्थ पट्टाचार्य श्री 108 सुनील सागर जी महाराज के 45 वें अवतरण दिवस पर शत-शत नमन

१०८ आचार्य श्री आदि महावीर विमल सन्मति सुनिल मेघ सागराय नमो नमः

सुर्य के समान चमकने वाले एवम तपने वाले आचार्यश्री जिन्होने जैन धर्म के मुल सिद्धांत तपस्या को अपने दैनिक दीक्षाकाल मे साकार किया ऐसे सर्वकालीन महान तपस्वी संत तपस्वी सम्राट सन्मतिसागरजी महाराजी के परम प्रियाग पट शिष्य वर्तमान के वर्धमान जन जन के आराध्य आचार्य भगवन सुनिल सागरजी महाराजजी के अवतरण दिवस पर आचार्यश्री के चरणो मे कोटी कोटी , अनंतानंतबार नमन नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु

वर्तमान मे दिगम्बर संतो मे प्रसीद्ध युवा एवम जन जन के ह्मदय मे श्रद्धा स्वरूप बसने वाले आचार्य भगवन जिनकी छोटी उम्र होने के बाद भी दिगम्बर संतो मे सबसे ऊपर ऊच्च पटल पर विराजीत करती है

  1. सरल एवम अंतरमुखी व्यक्तित्व
  2. पैसे वाला हो या साधारण व्यक्ति हो सभी को समान रूप से महत्व देते है
    3 अनेको जैन समाज मे वर्षो से चले आ रहे विवादो को निपटाया
    4 गांवो एवम शहरो मे वर्षो से मंदीरो मे चली आ रही परंपराओ के साथ कीसी भी प्रकार की छेडछानी अथवा दखलंदाजी नहि करते
    5 पंथवाद को बढावा नहि देते है
    6 सभी परंपराओ एवम आचार्यो को समान रूप से महत्व देते है
  3. AC , कुलर , पंखा , कम्पयुटर , मोबाईल का त्याग है
    8 प्रपंच , बाहरी दिखावे टेंट , बेंड , साज सज्जा को ज्यादा महत्व नहि देते है एवम प्रवचनो मे हमेशा जैन समाजो को संदेश देते है की खर्चो मे कटोती करे
    9 शिक्षा एवम स्वास्थय पर जोर देते है
    10 वर्तमान मे चलन हो गया गया है कि खुद का एक मठ हो , ऐसे कीसी भी परिग्रह करने वाले कार्यों से दुर रहते है
    11 प्रचार प्रसार एवम विवादो से हमेशा दुरी बनाये रखते है
    12 राष्ट प्रेम , हींदी भाषा के प्रयोग, स्वदेशी वस्तुओ के प्रयोग पर ज्यादा जोर देकर देश के प्रति जैन समाज के समर्पीत होने का संदेश देते है
    13 जीवदया व प्राणीमात्र के प्रति दया के भाव का संदेश देते है
    14 विशाल संध के नायक आचार्यश्री का सबसे बडा गुण युवा आचार्य होने के बावजुद वयोवृद्ध साधुओ को साथ लेकर चलते है जहा वर्तमान मे अनेको बडे बडे संत वयोवृद्ध साधुओ को साथ रखने से कन्नी काटते है वही आचार्य सुनिलसागरजी महाराजजी के संध मे युवा से लेकर वयोवृद्ध सभी का स्वागत एवम सभी की सेवा एवम बराबर ध्यान रखा जाता है आचार्यश्री खुद सेवा मे लग जाते है
    15 आचार्यश्री दैनिक चर्या के साथ किसी भी प्रकार का समझोता नहि करते है दैनिक धार्मीक कार्य नित समय पर होते है
    16 धन्य है ऐसे आचार्य वर्तमान के वर्धमान जिनकी भक्ति, सेवा एवम आहार देने का लाभ हम सभी भक्तो एवम श्रावको को मिल रहा है

👉🏿 लेखन – विपीन सेठ चितरी 👈🏿

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