जैनम् जयतु शासनम्

बन्धुओं ! आज पर्वराज पर्युषण पर्व के अर्थात दसलक्षण धर्म महापर्व के द्वितीय धर्म मार्दव धर्म दिवस पर शास्वत सिद्धक्षेत्र सम्मेद शिखर की पावन भूमि पर अनायास ही श्रमण संस्कृति की विभिन्न धाराओं में प्रमुख दो धाराओं का मिलन घटित हुआ।

चिरप्रतीक्षित संयोग को साकार घटित होते देखकर प्रत्यक्ष दर्शी श्रावकवृंद तो भावविभोर हो निर्गन्थ श्रमणों के प्रति नतमस्तक हुए ही दूरदर्शन पर भी श्रमण परम्परा के दो विशाल एवँ प्रतिष्ठित संघों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर एक साथ विराजित देख कर धर्मनायको के द्वारा मार्दव धर्म अर्थात मान रहित सरलता की साक्षात चारित्रिक प्रस्तुति ने सम्पूर्ण समाज में हर्ष की लहर को उद्वेलित कर यह संदेश दिया कि हमारे दीक्षागुरु भले ही भिन्न हों परन्तु हम सभी प्राणी मात्र के प्रति वात्सल्य भाव रखने वाले महागुरु , महाश्रमण महावीरस्वामी द्वारा प्रवर्तीत वीतरागी मोक्षमार्ग के अनुगामी हैं , एक ही पथ के पथिक हैं और स्व – पर कल्याण ही हमारा लक्ष्य है ।

बन्धुओं ! परमपूज्य आचार्य विशुद्धसागरजी एवँ परमपूज्य मुनिराज प्रमाणसागरजी महाराज द्वारा प्रस्तुत यह आचरण समाज में निश्चित ही नव उर्जा एवँ सामाजिक एकता का सृजन करेगा ऐसा मेरा विश्वास है।

ढाई द्वीप में विराजमान तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों के प्रति कोटि – कोटि नमोस्तु अर्पित करते हुवे प्राणी मात्र में वात्सल्य भाव हो और सभी जीवों का मोक्षमार्ग प्रशस्त हो यही कामना करता हूँ।

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जिनागम | धर्मसार