अभिनव श्रुत केवली वैज्ञानिक धर्माचार्य कनक नंदी गुरुदेव ने अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में 63 शलाखा पुरुषों के बारे में बताया। भव्य जीवो के भव रूपी वृक्षों को छेदन करने के लिए तीर्थंकर होते हैं ।भगवान की दिव्य ध्वनि के ज्ञान रूपी कुल्हाड़ी से संसार रूपी भव वृक्ष कों काटते हैं। श्रावक को चतुर्मास में अचार्य उपाध्याय साधु से ज्ञानार्जन करना चाहिए। आध्यात्मिक ज्ञान से ही संसार का छेदन होता है ।सबसे अधिक पुण्य शाली तीर्थंकर होते हैं। तीर्थंकर 24 होते हैं। पहले अनंत 24 या हो गई है आगे भी होंगी। चक्रवर्ती 12 होते हैं पहले चक्रवर्ती भरत थे। चक्रवर्ती 32000 राजाओं के राजा होते हैं। सगर ,मंगवा ,सनत कुमार, शांति नाथ ,कुंथुनाथ, अरहनाथ आदि चक्रवर्ती हुए हैं ।अतुल धन संपदा का चक्रवर्ती त्याग करके साधु बनकर मोक्ष जाते हैं। परंतु वैभव का उपभोग करते हुए मर जाते हैं तो बहुत आरंभ तथा बहुत परिग्रह के कारण नरक जाते हैं जैसे सुभौम चक्रवर्ती। नो बलभद्र होते हैं विजय, अचल, सुधर्म, नंदी ,नंदी मित्र ,बलदेव, राम ,पद्म आदि। नव नारायण होते हैं नरसीह ,पुंडरीक, कृष्ण, नारायण लक्ष्मण आदि। नव प्रतिनारायण होते हैं निशंभू ,बली, रावण ,जरासंघ आदि। हिंदू धर्म में शलाका पुरुषों को अवतार कहां जाता है ।शलाखा का अर्थ मापदंड होता है। जैन धर्म व हिंदू धर्म में इनका वर्णन लगभग समान है। शलाका पुरुष मोक्ष गामी होते हैं उस भव में दुष्ट दुर्जन हो सकते हैं परंतु मोक्ष अवश्य जाते हैं। प्रस्तुतकर्ता विजयलक्ष्मी