जैन कवि भूधरदास की चेतावनी

काहु घर पुत्र जायो, काहू के वियोग आयो ;

काहू राग-रंग, काहू रोआ-रोई करी है।

जहाँ भान उगत, उछाह गीत-गान देखे,

साँझ समय, ताहि थान हाय-हाय परी है।

ऎसी जग रीत को न देख भयभीत होये ;

हा हा, नर मूढ़ तेरी मति कौन हरी है ;

मानुष जन्म पाय, सोवत विहाय जाय ;

खोवत करोड़न की, एक-एक घरी है ।।

-कविवर भूधरदास जी

भावार्थ –

किसी के घर पुत्र जन्मा है ,किसी के यहाँ कोई मर गया है ,कहीं खुशियाँ हैं तो कहीं मातम हो रहा है , जिस जगह हमने सुबह उत्सव के गीत सुने वहीँ उसी जगह शाम को दुःख भरी हाय हाय भी देखि है |

कवि भूधरदास जी कहते है कि हे मनुष्य ! इस प्रकार की संसार की उतार चढाव की घटनाएँ देखकर भी तुझे इस नश्वर संसार से भय रुपी वैराग्य नहीं होता? पता नहीं तुम्हारी बुद्धि का किसने अपहरण कर लिया है ?तुम तो यह दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करके भी मोह निद्रा में सो कर इसे व्यर्थ गवां रहे हो और करोड़ो से भी अधिक की कीमत वाला यह एक एक पल यूँ ही खो रहे हो |

प्रस्तुति – डॉ अनेकांत

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