पंच सन्तो की जन्म भूमि धर्म नगरी चितरी की दो भव्यात्मा मातृशक्ति 19 जुलाई को संयम पथ पर होंगी आरूढ़

देवाधिदेव महातिशयकारी अष्टम तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु भगवान की छत्रछाया व तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मतिसागर जी,गणाधिपति गणधराचार्य श्री कुंथूसागर जी,वैज्ञानिक धर्मचार्य श्री कनकनंदी जी व प्रज्ञायोगी आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी,चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनीलसागर जी जैसे गुरु भगवंतो के शुभ संस्कारो से पल्ल्वीत धर्म नगरी चितरी जो की राजस्थान के डूंगरपुर जिले मे स्थित है।

इस नगरी मे समाधिस्थ मुनि श्री गज सागर जी,समाधिस्थ मुनि श्री मेघ सागर जी,समाधिस्थ मुनि श्री चंद्राभनंदी जी,आचार्य श्री चन्द्रगुप्त जी व आर्यिका श्री सुनिधिमति माताजी जैसे संतो ने जन्म लिया है

जहा पर श्रावक श्रेष्ठी सेठ मंगल जी व धर्मपरायण श्राविका सूरज देवी के घर दो पुत्र व तीन कन्याओ का जन्म हुआ जिसमे सन 1956 मे द्वितीय क्रम मे कन्या रत्न सुशीला जी का जन्म हुआ।

मात पिता के व्रत नियम से भरपुर संस्कारो से भूषित सुशीला जी का विवाह नगर के ही फाइयोत जैन परिवार घर के अत्यंत सुशील – विनम्र धनपाल जी के साथ हुआ।

सुशीला जी व धनपाल जी अपने दाम्पत्य जीवन मे सदैव नेकी,ईमानदारी,संघर्षशील रहते हुए अपने तीनो सन्तानो को धर्म के साथ साथ लौकिक शिक्षा मे भी अग्रणी रखा।

तीन संतान मे सबसे बड़ी बेटी सरोज,द्वितीय पुत्र मनीष व सन 1978 मे जन्मी सबसे छोटी बेटी भव्यात्मा संध्या है।

आप दम्पत्ति की शिक्षा के प्रति जागरूकता,बच्चों के अटल पुरुषार्थ के साथ साथ माँ सरस्वती की भी ऐसी अनुकम्पा रही की आपके तीनो बच्चों ने राजकीय सर्विस को क्रमशः प्राप्त किया।

आपके घर मे शिक्षा का जो वतावरण बना उसका सुप्रभाव आपके सम्पूर्ण परिवार व परिजनों के बच्चों पर भी पड़ा।

सन 1999 मे आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी व गणिनी आर्यिका श्री राजश्री माताजी संघ के वर्षयोग मे नगर के बच्चों पर धर्म के अभूतपूर्व संस्कार पड़े।

जिनमे सन 2002 मे बेटी संध्या,मौसेरी बहन रागिनी,सहेली अल्का व बाल युवा कपिल आदि ने नगर मे पधारे उपाध्याय मुनी श्री मनोज्ञ सागर जी के ज्ञान प्रभावना से प्रभावित होकर आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। उनमे से कपिल भैया आज आचार्य श्री चन्द्रगुप्त जी व रागिनी दीदी आज आर्यिका श्री सुनिधीमती माताजी के रूप मे जग विख्यात है।

सन 2005 मे परिवार के मुखिया श्रीमान धनपाल जी का दुर्घटना मे स्वर्गवास हो गया,संसार की इस आसारता पूर्ण घटना ने सुशीला जी व बेटी संध्या के वैराग्य भाव दृढ कर दिया।

राजकीय सर्विस मे रहते हुए जब भी अवकाश होते तब संध्या दीदी अपनी माँ सुशीला जी के साथ साधु संघो मे जाकर स्वाध्याय,आहारदान वैयाव्रत्ती करने मे अग्रणी रहने लगे।

आपका श्रीमद राजचंद अध्यात्मिक साधना केंद्र कोबा व उनके ममक्षुओ से भी खास जुड़ाव रहा।

विगत 21 वर्षो से आप दोनो मा बेटी गाँव घर मे रहते हुए भी आर्यिका श्री सुनिधि मति माताजी के प्रमुख मार्गदर्शन मे सतत स्वाध्याय,व्रत नियम पूर्वक,निरंतर दिगंबर गुरुओ की शरण पाकर स्वयं को संयम पथ के अभ्यास मे परिपक्व करते रहे।

जिनमे उनके प्रारम्भिक जीवन से साथी रहे आर्यिका श्री सुनिधि मति माताजी,बाल ब्रह्म अल्का दीदी,आचार्य श्री चन्द्रगुप्त जी गुरुदेव,आचार्य श्री सुयशगुप्त जी,ब्राहा.सुरेश भैया,ब्रह्म कपिल भैया,ब्रह्म डा. रागिनी दीदी मुख्य प्रेरणा व प्रोत्साहक रहे।

ब्रह्म संध्या दीदी अनेक शास्त्रों मे कुशल होते हुए ओजस्वी व प्रभावशाली प्रवचन शैली से जन जन को अभिभुत कर देती है।

विगत 18 वर्षो मे वैज्ञानिक धर्मचार्य श्री कनकनन्दि जी गुरुराज जिनका विशेष ज्ञान रस आपको सतत मिला उनके साथ ही प्रज्ञायोगी आचार्य श्री गुप्तिनन्दी जी,आचार्य श्री प्रमुख सागर जी,आचार्य श्री वैराग्य नंदी जी,आचार्य श्री सुयशगुप्त – आचार्य श्री चन्द्रगुप्त जी,मुनि श्री महिमा सागर जी व मुनि श्री जयकीर्ति जी साहित अनेक गुरुभगवंतो का सानिध्य भी मिला।

पिछले कुछ वर्ष मे बाल ब्रह्म संध्या दीदी के शरीर मे कुछ व्याधि रूपी उपसर्ग भी आये किन्तु स्वाध्याय तपस्वी आचार्य श्री कनक नंदी जी गुरुराज के वात्सल्य रूपी शुभाशीष व मजबूत आत्मबल से सभी शारीरिक संकट शांत हो गये।

बाल ब्रह्म संध्या दीदी के श्रेष्ठ चारित्र,धर्म आचरण व उपदेश का प्रभाव नगर के प्रत्येक बाल गोपाल,युवा युवती, महिला पुरुष पर झलकता है।

ऐसी आप दोनो भव्यात्मन माँ बेटी महाराष्ट्र के कोल्हापुर क्षेत्र मे दिनांक 19 जुलाई को प्रज्ञाश्रमण आचार्य श्री सुयशगुप्त जी गुरुदेव के अतिशय हस्त कमलों से भव्य जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करेंगी।

यह तो निश्चित है की बाल ब्रह्म. संध्या संध्या दीदी व ब्रह्म सुशीला देवी संयम पथ पर आरूढ़ होकर,अपनी कुशल साधना,आत्म मुग्ध कर देने वाली प्रवचन शैली,ज्ञान दक्षता से जैन दर्शन व अपने गुरुओ को विश्व पटल पर गौरवान्वित करेंगी।

यह हमारे चितरी नगर,भारत वर्षीय हुमड जैन समाज व सम्पूर्ण वागड क्षेत्र के लिए गौरव के पल है

आपके संयम साधना की अनंत अनुमोदना

शब्द सुमन – शाह मधोक जैन चितरी

अनुमोदन कर्ता – सकल दिगंबर जैन समाज चितरी
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