पूज्य मुनिवर श्री चंद्र गुप्तमुनी श्री जी की महिलाओं को समर्पित अनुपम रचना

जय जिनेंद्र पूज्य मुनिवर श्री चंद्र गुप्तमुनी श्री जी की महिलाओं को समर्पित पूज्य मुनिवर श्री चंद्र गुप्तमुनी श्री  जी की महिलाओं को समर्पित अनुपम रचना।

कोटिशः  नमोस्तु

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;

को अगर जनम दे सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …

आज काल की विडंबना से ;

नारी के अधिकार गए …

अधिकारों के दाता प्रभु भी ;

अब तो मोक्ष सिधार गए …

जो नारी चंदनबाला बन ;

प्रभु को पडघा सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …१

चौके में तो माँ बहने ही ;

भोजन शुद्ध बनाती है …

यदि अशुद्ध है तो वो कैसे ;

काया शुद्ध बताती है …

सम्यक्त्वी बन नारिवेद का ;

छेदन जो कर सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …२

व्यसनी पुरुष अभिषेक करे ;

जबकि उनकी आदत गंदी …

फिर भी शीलवती नारी पर ;

कैसे कर दी पाबंदी …

सफेद साडी धारण कर जो ;

महाव्रती बन सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …३

खुद अशुद्ध है तो वो कैसे ;

वेदी शुद्धि करती है …

घटयात्रा में घटफ़ लेकर क्यों ;

तीर्थों का जल भरती है …

जो नारी शची बनकर प्रभु का ;

पहला दर्शन करती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …४

हर नारियां है अशुद्ध तो ;

घटयात्रा में पुरुष चलें …

वरना उनको उनका पूरा ;

आगमोक्त अधिकार मिले …

जो सुवर्ण सौभाग्यवती बन ;

विधिविधान कर सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …५

प्राचीन ग्रंथों का प्रमाण दो ;

कोई तो मुझको आकर …

जो मुझको झुटलादे उसका ;

बन जाऊंगा मैं चाकर …

जो माता मरुदेवी त्रिशला ;

ऐरादेवी बनती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …६

ओ माताओं जग जाओ ;

वरना सर्वस्व गंवा दोगी …

अभिषेक के जैसे आगे ;

दर्शन भी ना पाओगी …

‘चंद्रगुप्त’ कहता जो शची बन ;

परभव मुक्ति वरती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …७

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;

को अगर जनम दे सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …

 रचनाकार :-

आचार्य श्री गुप्तिनंदीजी जी के सुयोग्य शिष्य मुनिश्री चंद्रगुप्तजी द्वारा रचित नारी-अभिषेक पर सुंदर काव्य नमोस्तु

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;

को अगर जनम दे सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …

आज काल की विडंबना से ;

नारी के अधिकार गए …

अधिकारों के दाता प्रभु भी ;

अब तो मोक्ष सिधार गए …

जो नारी चंदनबाला बन ;

प्रभु को पडघा सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …१

चौके में तो माँ बहने ही ;

भोजन शुद्ध बनाती है …

यदि अशुद्ध है तो वो कैसे ;

काया शुद्ध बताती है …

सम्यक्त्वी बन नारिवेद का ;

छेदन जो कर सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …२

व्यसनी पुरुष अभिषेक करे ;

जबकि उनकी आदत गंदी …

फिर भी शीलवती नारी पर ;

कैसे कर दी पाबंदी …

सफेद साडी धारण कर जो ;

महाव्रती बन सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …३

खुद अशुद्ध है तो वो कैसे ;

वेदी शुद्धि करती है …

घटयात्रा में घटफ़ लेकर क्यों ;

तीर्थों का जल भरती है …

जो नारी शची बनकर प्रभु का ;

पहला दर्शन करती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …४

हर नारियां है अशुद्ध तो ;

घटयात्रा में पुरुष चलें …

वरना उनको उनका पूरा ;

आगमोक्त अधिकार मिले …

जो सुवर्ण सौभाग्यवती बन ;

विधिविधान कर सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …५

प्राचीन ग्रंथों का प्रमाण दो ;

कोई तो मुझको आकर …

जो मुझको झुटलादे उसका ;

बन जाऊंगा मैं चाकर …

जो माता मरुदेवी त्रिशला ;

ऐरादेवी बनती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …६

ओ माताओं जग जाओ ;

वरना सर्वस्व गंवा दोगी …

अभिषेक के जैसे आगे ;

दर्शन भी ना पाओगी …

‘चंद्रगुप्त’ कहता जो शची बन ;

परभव मुक्ति वरती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …७

जो नारी तीर्थंकर प्रभु ;

को अगर जनम दे सकती है …

वो नारी अभिषेक प्रभु का ;

कैसे ना कर सकती है …

रचनाकार :- आचार्य श्री गुप्तिनंदीजी जी के सुयोग्य शिष्य मुनिश्री चंद्रगुप्तजी द्वारा रचित नारी-अभिषेक पर सुंदर काव्य

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