निमियाघाट-(झारखंड). अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता साधना महोदधि भारत गौरव उभय मासोपासी आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने निमियाघाट के सहस्त्र वर्ष पुरानी भगवान पारसनाथ की वरदानी छांव तले विश्व हितांकर विघ्न हरण चिंतामणि पारसनाथ जिनेंद्र महाअर्चना महोत्सव पर भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए अंतर्मना प्रसन्नसागरजी महाराज ने कहा:- हर लड़की के भाग्य में माता-पिता होते हैं परंतु हर मां-बाप के भाग्य में लड़की नहीं होती हर घर में एक लड़की तो होना ही चाहिए।
लड़की अच्छे-अच्छों के अहंकार को तोड़ देती है अच्छे- अच्छो को सिर झुका कर चलना सिखा देती है। कुछ लोग कहते हैं आचार्य श्री हमारे यहां तो दो बेटे हैं हम पर कोई लड़की नहीं है बे इस अकड़ में कहते हैं की लड़की ना होना गर्व की बात है ध्यान रखना जिस पे कोई लड़की नहीं है उसके पास दिल भी नहीं है।
क्योंकि दिल तो उस चीज का नाम है जिसमें समर्पण,नम्रता सरलता हो जिनपे कोई लड़की नहीं हो वह अक्सर कठोर हो जाते हैं वे कहते हैं हम पर कोई लड़की नहीं इसलिए हमें झुकने की जरूरत नहीं।
अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा एक सज्जन आए और बोले मेरा कोई पुत्र नहीं है बस एक पुत्री है मैंने कहा तो क्या हुआ पुत्री तो किन्हीं अर्थों में पुत्र से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
क्योंकि पुत्र तो एक ही कुल को रोशन करता है लेकिन पुत्री, बेटी, कन्या दो कुलों को रोशन करती है। लड़की एक अपने मां-बाप के कुल को रोशन करती है और दूसरा अपने पति के कुल को रोशन करती है। वे बोले आपका कहना बिल्कुल सही है
पर मेरी चिंता यह है कि लड़का ना होने से मेरा वंश समाप्त हो जाएगा अतः मुझे वंश के अंश का आशीर्वाद चाहिए। हमने कहा भाई ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके घर लड़का ना हो उसका वंश ना चल पाया हो महावीर स्वामी के वंश को चलाने वाला कौन है भगवान महावीर तो बाल ब्रह्मचारी थे।
उन्होंने कोई विवाह नहीं किया उनकी कोई संतान नहीं थी फिर भी उनका नाम उनकी कीर्ति उनकी यशोगाथा दुनिया के दिमाग में सदियों से बसी है। महावीर भगवान को निर्वाण हुए 2620 साल से ज्यादा गुजर गए हैं। फिर भी वह भारतीय छितिज में ध्रुवतारे जैसी आभा बिखेर रहे हैं पुत्रों से ही वंश चलता हो ऐसा नहीं है।
अगर ऐसा हो तो भगवान महावीर,महात्मा बुद्ध विवेकानंद,दयानंद,विनोबा भावे आचार्य कुंदकुंद,आचार्य शांतिसागर जी व तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मतिसागर जी महाराज श्री के कोई पुत्र नहीं थे फिर भी वह भारतीय इतिहास में अमरता का वरदान लिए जनमानस के दिल में बसे हैं वंश चलने या डूबने की बात ही व्यर्थ है इस पृथ्वी पर ऐसे ऐसे दिव्य पुरुष पैदा हुए हैं जिनके वंश को चलाने वाला कोई पुत्र नहीं था।
जिनका कोई वंश नहीं चला फिर भी वह परमहंस बनकर जिये वंश के अंश की चिंता तो छोड़ दीजिए।
उन्होंने कहा वंश का अंश कुलदीपक ही बने यह जरूरी नहीं है।वह कुल अंगार भी बन सकता है।वंश का अंश परमहंस ही बने जरूरी नहीं वह कंस भी बन सकता है।
तुम्हें याद होगा धृतराष्ट्र के ‘सौ’ पुत्र थे लेकिन उन पुत्रों ने अपने पूर्वजों का कौन सा हित साधा रावण के एक हजार पुत्र थे पर वह अपने कुल का नाम रोशन ना कर पाए। इसलिए तुम्हारे घर में लड़का नहीं है तो व्यर्थ के आंसू बहाने की आवश्यकता नहीं है।
अपनी बेटी में ही बेटे के दर्शन करने की आदत डाल लो। राजकुमार अजमे नवीन जैन से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी