🙏🙏 उत्तम मार्दव धर्म 🙏🙏
मार्दव अर्थात् मृदु – परिणाम, कोमल परिणाम, अभिमान के विरोधी।
आज तक पर – पदार्थों को अपना मानता हुआ कुल, जाति, रूप, धन, बल, ऐश्वर्य, तप, ज्ञान आदि की महिमा को गिनता हुआ, इनमें से रस लेता हुआ, इनके कारण ही अपनी महानता मानकर गर्व करता हुआ चला आ रहा है। झूठा है यह गर्व, जिसका कोई मूल्य नहीं है, कोई आधार नहीं है।
इन पदार्थों से अपनी महिमा व बड़प्पन की भिक्षा माँगने में ही गर्व करता आ रहा है। इनका मैं स्वामी हूँ, इनका मैं कर्ता हूँ, मेरे द्वारा ही इनका काम चल रहा है, ये सब मेरे लिए ही काम कर रहे हैं। इत्यादि झूठी कल्पनाओं के अंधकार में आज तू अपनी वास्तविक महिमा को भूल बैठा है, अपनी विभूति को न गिनकर भिखारी बन बैठा है।
लोक में भी दो प्रकार के अभिमान कहने में आते हैं — एक स्वाभिमान और दूसरा सामान्य अभिमान अर्थात् पराभिमान।
मैं उत्तम कुल का हूँ क्योंकि मेरा पिता बड़ा आदमी है इत्यादि तो पराभिमान है क्योंकि पिता और पर की महिमा में झूठा अपनत्व किया जा रहा है। परंतु मेरा यह कर्तव्य नहीं क्योंकि मेरा कुल ऊँचा है, यह है स्वाभिमान क्योंकि अपने कर्तव्य की महिमा का मूल्यांकन करने में आ रहा है।
मान महा विष रुप,
करहि नीच-गति जगत में।
कोमल सुधा अनुप,
सुख पावे प्राणी सदा।।
आज का जाप —
।। ॐ ह्रीं अर्हम श्री उत्तम-मार्दव धर्मांगाय नम: ।।