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,बीसवीं सदी की प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजय मतिमाताजी के 19वे समाधि दिवस पर कोटिश:वन्दामि

वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी ऋषिराज की सुशिष्या,दादागुरु तीर्थभक्त आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी भगवंत के शुभाशीष वरदहस्त को पाने वाली,अनेक आचार्य व साधुओं की शिक्षागुरु ,बीसवीं सदी की प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजय मतिमाताजी के 19वे समाधि दिवस पर कोटिश:वन्दामि
पूज्या माताजी के उपकार का प्रसंग

सन 1975 में उड़ीसा ब्रह्मपुरी उत्कल का उच्च क्षत्रिय कुल वाला विलक्षण बालयुवक गंगाधर सत्य की खोज में,विश्व के प्रायः सभी धर्म ग्रंथों के अध्ययन के पश्चात जैन धर्म के तत्व मर्म की जिज्ञासाओं का समाधान पाने शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखर जी गए,जहां लाखो जीवो के तारणहार वात्सलय रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी ऋषिराज के पदमुल में पहुंचे ,वहां उन युवा गंगाधर ने आचार्य श्री विमलसागर जी भगवंत के समक्ष तीन जिज्ञासाएं रखी,आचार्य श्री निमित्त ज्ञानी थे,अतः देखते ही उन्होंने उस युवा को भाप लिया था कि यह युवा जैन दर्शन का महान विद्वान संत होगा जो जैन सिद्धांत को विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध कर दुनिया के सामने रखेगा। अतः उन्होंने वात्सल्य भरी मुद्रा में कहा,बेटा तुम्हारी इन जिज्ञासाओं का समाधान तो मेरी यह शिष्या आर्यिका विजयमती माताजी ही दे देगी।

गुरु आज्ञा से युवक गंगाधर अपनी तीन जिज्ञासा पूज्या माताजी के समक्ष रखते हैं जिस पर उन्हें पूर्ण संतुष्टि के साथ सुंदर समाधान मिलता है और अनेक तत्व चर्चा से युवक गंगाधर को अत्यंत आत्मिक आनंद मिलता है और वे उसी समय प्रण कर लेते हैं कि मुझे जिस सत्य की तलाश है वो पूर्ण रूप से जैन धर्म में ही है व इन माताजी में इतना ज्ञान है तो उनके गुरु में कितना ज्ञान होगा?? अतः अब मुझे अन्य कही नहीं भटकना इन्हीं गुरुओं के साथ अपना कल्याण करना है इस तरह गंगाधर तब वात्सलय रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी भगवंत की आज्ञा से उन्हीं के साथ विद्यमान गणधराचार्य श्री कुंथुसागर जी गुरुराज के पास रहकर ज्ञान ध्यान में अभ्यास रत रहने लगे।
यही गंगाधर सन 1978 में गणाधिपति गणधराचार्य श्री कुंथूसागर जी ऋषिराज से क्षुल्लक व सन 1981 में मुनि दीक्षा लेकर आज वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुराज के रूप में जग विख्यात हैं।
आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव अपनी प्रथम शिक्षा दात्री गुरु के रूप में प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजयमति माताजी का सदैव गुणगान करते हैं।

ऐसी पूज्या माताजी के समाधि दिवस पर अन्नत बार वन्दामि

🖊️गणिनी आर्यिका आस्था श्री माताजी द्वारा रचित विलक्षण योगी जीवन चरित्र पुस्तक से प्रेषित🖊️

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