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“ संविधान के मंदिर और राष्ट्र की अस्मिता को नमन — अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज।”।

*यह स्थल केवल इमारतें नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं। यहां आना, वास्तव में भारत के संविधान, संस्कृति और संकल्प को नमन करने जैसा है।”

संविधान के मंदिर और राष्ट्र की अस्मिता को नमन — अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज।”।

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा — 14 दिसंबर 2025 का दिन

नई दिल्ली, 14 दिसंबर 2025।
भारतीय लोकतंत्र और जैन इतिहास में आज का दिन एक ऐतिहासिक अध्याय बन गया। अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज चतुविध संघ के सान्निध्य में, उपाध्याय श्री पीयूष सागर जी, प्रवर्तक मुनि श्री सहज सागर जी, निर्यापक मुनि श्री नवपद्म सागर जी, मुनि श्री अप्रमत्त सागर जी एवं मुनि श्री परिमल सागर जी सहित कुल 15 पीछीधारी मुनिराजों ने नई संसद के लोकसभा – राज्य सभा भवन, पुराना संसद भवन तथा राष्ट्रपति भवन का भ्रमण कर भारतीय लोकतंत्र के पवित्र स्थलों को अपने चरणों से पावन किया

इस अवसर पर संबंधित अधिकारियों ने विनम्रता एवं श्रद्धा भाव से सभी स्थानों का विस्तृत परिचय दिया। लोकसभा की कार्यवाही कैसे संचालित होती है, सांसदों की बैठक व्यवस्था, मतदान की प्रक्रिया और संसद के संचालन से जुड़ी अनेक जानकारियाँ आचार्य श्री और संघ को दी गईं।

संसद भवन, जिसे देश का संविधान मंदिर कहा जाता है, और राष्ट्रपति भवन, जो राष्ट्र की गौरव, अस्मिता और गरिमा का प्रतीक है — इन दोनों स्थलों का भ्रमण आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने अत्यंत गहनता और मनोभाव के साथ किया। उन्होंने कहा कि “ *यह स्थल केवल इमारतें नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं। यहां आना, वास्तव में भारत के संविधान, संस्कृति और संकल्प को नमन करने जैसा है।”


  • राष्ट्रपति भवन में अधिकारियों ने सेंट्रल हॉल, भोजन कक्ष, विदेशी अतिथियों से मिलने का स्थल तथा अमृत उद्यान (पूर्व मुगल गार्डन) का भी विस्तृत भ्रमण कराया। जानकारी दी गई कि राष्ट्रपति भवन के भोजन स्थल पर राष्ट्रपति जी पूर्ण शाकाहारी हैं और यहां मद्य आदि का प्रयोग नहीं किया जाता — यह बात सुनकर आचार्य श्री ने प्रसन्नता व्यक्त की।

इस ऐतिहासिक अवसर पर विदेशी पर्यटक, अधिकारीगण और भारतीय दर्शक इतने विशाल जैन मुनि संघ को देखकर भावविभोर हो उठे। सभी ने इस अद्भुत दृश्य को भारतीय संस्कृति और अहिंसा के साक्षात दर्शन बताया।

इतिहास साक्षी है कि प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के समय में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज संसद गए थे, तत्पश्चात आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ने भी संसद का भ्रमण किया था। परंतु इतने विशाल दिगंबर मुनि संघ का संसद एवं राष्ट्रपति भवन में प्रवेश पहली बार हुआ है, जिससे यह दिन जैन समाज एवं भारतीय लोकतंत्र — दोनों के इतिहास में अमर हो गया है।

संघ के साथ बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ भी इस पवित्र अवसर के साक्षी बने। चार घंटे से अधिक समय तक अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी एवं सत्कार सभी के लिए अत्यंत प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक रहा।

निस्संदेह, यह दिवस न केवल जैन धर्म की अहिंसा, शांति और संयम की भावना का प्रतीक बना, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के आदर्शों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भी सशक्त संदेश लेकर आया।

“ संविधान के मंदिर और राष्ट्र की अस्मिता को नमन — अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज।”।

*यह स्थल केवल इमारतें नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं। यहां आना, वास्तव में भारत के संविधान, संस्कृति और संकल्प को नमन करने जैसा है।”

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