भारत वसुन्धरा के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित बेलगांव जिला, जिसे वर्तमान काल के बीसवीं सदी और इकीसवीं सदी के अनेकानेक महान दिगंबर आचार्यों और मुनियों को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुवा है, ऐसे बेलगांव जिले को वर्ष २०२१ का आचार्य १०८ श्री शान्ति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य १०८ श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के ५३ वें वर्षायोग सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त हो रहा है।
कर्नाटक के बेलगांव की इसी पावन भूमि पर बेलगांव एयरपोर्ट से 80 किमी और कोल्हापुर एयरपोर्ट से 40 किमी दूर, महाराष्ट्र की सिमा पर स्थित है अति मनोहारी क्षेत्र कोथली, जिसे बीसवीं सदी के महान आचार्यरत्न भारत गौरव १०८ श्री देशभूषण जी महाराज की जन्म स्थली, तपस्थली और समाधी स्थली होने का गौरव प्राप्त है। एक तरफ जहाँ आचार्य रत्न देशभूषण जी महाराज की संयम और तपस्या के प्रभाव से इस धरती का कण कण आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त है वहीँ दूसरी तरफ इसके चारों तरफ अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य मानो सचमुच में ये धरती सम्पूर्ण भारत देश का भूषण कहलाने लायक है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर लगता है मानों देवताओं ने स्वयं इसे अपने हाथों से अपने निवास के लिए ही बसाया हो और जैसे सचमुच में ये स्थली प्राकृतिक सौंदर्य की एक कोथली (पोटली) ही हो, जिसकी सुरम्यता और रमणीयता देखते ही बनती है। छोटे छोटे टीले, पहाड़ और उनपर चारों तरफ घनी हरियाली , मंद मंद ठंडी हवा के साथ बादलों का घुमड़ घुमड़ कर आना और फिर हल्की हल्की धुप के बिच रिमझिम फुहारें और उन पर बनता इंद्रधनुष मानो संकेत दे रहा हो की स्वर्ग से इंद्र स्वयं यहाँ आये है। और इन सबके बिच कोयल की मीठी राग के साथ छम छम नाचता मोर भारत देश के इस भूषण को गौरव प्रदान करता है। एक तरफ पहाड़ी पर आकाश को छूती भगवान शांतिनाथ(21 फुट) , चन्द्रप्रभु और महावीर भगवान (19फुट) की भव्य खड्गासन प्रतिमाएं तो दूसरी तरफ व्यवस्थित वर्णो की नवग्रह अरिष्ट निवारक तीर्थंकरों की भव्य पद्मासन प्रतिमाएं और ॐ, नव देवता, पंच परमेष्ठी के साथ विदेह क्षेत्र में विध्यमान बीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं। इन्हीं के मध्य भव्य काले पाषाण की विघ्नहरण भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा जिसके दर्शन मात्र से भक्तों के हर विघ्न दूर हो जाते है और उनके जीवन की कालिमा दूर हो जाती है। पहाड़ी पर ही स्थित रत्नमई प्रतिमाओ से युक्त भव्य जिनालय जिसमे लगभग 91 रत्नमई अद्भुत प्रतिमाएं। आदिनाथ भगवान्, भरत और बाहुबली स्वामी की भव्य खड्गासन प्रतिमाएं और इनके साथ भगवान् पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा और भव्य नंदीश्वर द्वीप और समवशरण जिनालय। पहाड़ की तलहटी पर आचार्य रत्न देशभूषण जी महाराज की समाधि स्थली। कहते है की इस समाधी स्थली के दर्शन से भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। और आचार्य श्री वरदत्त सागर जी महाराज की समाधि स्थली। इसी के साथ क्षेत्र पर विराजमान 108 श्री महिमा सागर जी और 105 आर्यिका श्री सरस्वती माताजी सहित कुल 38 मुनि आर्यिकाओं के विशाल संघ सहित आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी, मानो संपूर्ण दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तीर्थंकर प्रभु का साक्षात् समवशरण ही आया हो।
ऐसे मनोहारी क्षेत्र को अपनी पद रज से पवित्र करने वाले पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का कोथली प्रांत में प्रथम वर्षायोग सम्पन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
चातुर्मास स्थापना
23 जुलाई को स्थापना समारोह के पूर्व प्रातः काल सिद्धों के गुणों के स्मरण नमन हेतु चल रहे सिद्धचक्र महामंडल विधान के 1024 अर्घ समर्पण किये गए। एक तरफ तो उन सिद्ध प्रभु की भक्ति जो सिद्धालय में विराजमान हो चुके थे और दूसरी तरफ उन आचार्य भगवन की भक्ति जो सिद्धालय जाने के पथ पर आरूढ़ थे। तत्पश्चात् स्थापना कार्यक्रम का प्रारंभ दोपहर के लगभग 12.30 बजे से हुवा। मंद मंद चलती पवन और उसके साथ इंद्रों के द्वारा किये जा रहे जलाभिषेक के मध्य ध्वजारोहण प. श्री कुमुद जी सोनी के निर्देशन में इचलकरणजी के श्रेष्ठी श्री राजेश जी दोशी ने किया। तत्पश्चात् ४.१५ बजे आचार्य संघ का सभा मंडप में मंगल पदार्पण हुवा।
कोरोना प्रोटोकॉल के मध्य प्रशासनिक निर्देशों का पालन करते हुए बंगाल, राजस्थान , महाराष्ट्र , कर्णाटक , आसाम, मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य क्षेत्रों से विशिष्ट जनों से सुशोभित सभा मंडप विविधता में एकता का सन्देश दे रहा था।
मंगलाचरण किया प.कुमुद जी सोनी ने और मंगल गान किया कोथली की छोटी सी बालिका ब्रह्मीला शांतिनाथ ने। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शांतिसागर जी महाराज के चित्र का अनावरण किया कोलकाता के श्रेष्ठि श्री प्रकाश चंद जी सरला देवी पाटनी परिवार ने और दीप प्रज्वलन किया गुवाहाटी के श्री राजेंद्र जी सुमन छाबड़ा ने।
समस्त पूर्वाचार्यों को अर्घ समर्पण करने के पश्चात आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया किशनगढ़ के अनन्य भक्त श्रेष्ठी श्री पारसमल जी राजेश कुमार जी पांड्या परिवार ने और दूध से पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया किशनगढ़ के अनन्य भक्त श्रेष्ठी श्री राज कुमार जी दोशी ने। आचार्य श्री को शास्त्र भेंट करने का पुण्यार्जन किया जयपुर के श्रेष्ठि श्री पूनम चंद जी शाह ने। उनकी अनुपस्थिति में शाश्त्र भेंट किया पूनम चंद की समधि श्रीमती तारा देवी सेठी ने।
तत्पश्चात् स्थानीय समिति द्वारा आचार्य संघ के चरणों में चातुर्मास करने हेतु निवेदन किया गया। इस अवसर पर कृतज्ञता ज्ञापन स्वरुप आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। आचार्य श्री की पूजन का सौभग्य अर्जित किया किशनगढ़ के श्रेष्ठी श्री राज कुमार जी दोशी ने। श्री अजय जी पंचोलिया इंदौर और सरला देवी पाटनी ने अपने सुमधुर कंठ से आचार्य श्री की पूजन उच्चारण की। संघस्थ तारा देवी सेठी ने चातुर्मास स्थापना पर एक सुमधुर भजन प्रस्तुत किया। पूजन के पश्चात् अवसर आया आचार्य श्री के आशीर्वचन का, क्षेत्र पर चातुर्मास स्थापना की स्वीकृति प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि महिमा सागर जी और सरस्वती मति माताजी का कई समय से इस क्षेत्र पर चातुर्मास करवाने का मन था और परम पूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज की इस पावन भूमि के प्रशस्त वातावरण में संघ को साधना का अपूर्व अवसर प्राप्त होगा। और इसी प्रशस्त वातावरण को देखते हुए संघ के आर्यिका श्री शीतलमति माताजी,आर्यिका श्री चैत्यमति माताजी , आर्यिका श्री विनम्र मति माताजी और क्षुल्लक श्री विशाल सागर जी महाराज के साथ ब्र. दीप्ती दीदी और अंजू बहन ने उत्कृष्ट अठाई व्रत को धारण किया है। साथ ही 5 आर्यिका माताओं ने कोमली अठाइ के व्रत को धारण किया है।
अद्भुत दृश्य
जैसे ही आचार्य श्री ने चातुर्मास स्थापना विधि पूर्ण की मानो कोथली स्थित मानव ही नहीं प्रकृति का मन भी नाच उठा। मंद मंद बहती पवन के साथ रिमझिम बरसती वर्षा में मोर नाच उठे। संघ द्वारा चातुर्मास स्थापना हेतु भक्तियों का पाठ किया गया। और फिर अवसर आया चातुर्मास के कलश स्थापना का जिसका सौभाग्य प्राप्त किया दानवीर श्रेष्ठी कोलकाता (हावड़ा) के श्री प्रकाश चंद जी आदित्य, मनन, रचित पाटनी परिवार ने। आचार्य संघ के आगे कलश लेकर प्रकाश चंद जी सरला देवी पाटनी चल रहे थे एवं आचार्य श्री के आशीर्वाद से तथा मुनि श्री हितेंद्र सागर जी के मार्गदर्शन में चातुर्मास कलश की स्थापना की गई। तत्पश्चात आचार्य श्री की आरती सम्पन्न हुई।
गुरु पूर्णिमा और वीर शासन जयंती
24 जुलाई का दिन था गुरु पूर्णिमा और वीर शासन जयंती के संयुक्त शुभ अवसर का, अवसर था गुरुओं के प्रति विनय तथा भक्ति का, एक ऐसा दिवस जिस दिन इंद्रभूति को महान गुरु भगवान महावीर स्वामी मिले और हम सबको गौतम स्वामी जैसे महागुरु। प्रातःकाल कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। प्रतिष्ठाचार्य श्री कुमुद जी सोनी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया तत्पश्चात महावीर स्वामी, गौतम स्वामी एवं समस्त पूर्वाचार्यों को अर्घ समर्पित किया गया। किशनगढ़ के श्रेष्ठी श्री विजय जी काश्लिवाल परिवार द्वारा जल से तथा उपस्थित भक्तों द्वारा पंचामृत से आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन किये गये। सौम्य वातावरण में जहां भक्तगण आचार्य गुरु की पाद प्रक्षालन करके अपने कर्मों का क्षालन कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ भक्तों पर मन्द मन्द मुस्कान उड़ेलते हुए आचार्य श्री आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।और फिर अति उत्साह के साथ गुवाहाटी के श्री किशोर जी काला परिवार द्वारा तथा उपस्थित भक्तों द्वारा आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। आचार्य श्री ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है तथा आज ही के दिन गौतम स्वामी के द्वारा हमें गुरु की महत्ता का पता चला। आचार्य श्री ने कहा कि गुरु की संगति से संतोष प्राप्त होता है और उसी शक्ति से व्यक्ति मुक्ति पथ पर अग्रसर होता है।
आचार्य श्री ने वीर शासन जयंती की महत्ता बताते हुए कहा कि वर्तमान शासन नायक भगवान् श्री महावीर स्वामी की वाणी समवशरण में 66 दिन बाद आज ही के दिन खीरी और गौतम स्वामी ने उसे झेला। और भगवान महावीर स्वामी का शासन 84000 वर्ष तक चलेगा। आज ही के दिन सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर गमन करना प्रारम्भ करता है। तत्पश्चात गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गुरु अर्चन कलश की मंगल स्थापना की गई। गुरु अर्चन कलश स्थापना का पुण्यार्जन किया गुवाहाटी के श्रीमती मणि बाई, भागचंद जी, राजेन्द्र जी सुमन छाबड़ा एवं सेलम के श्री सरोज जी सुनीता जी बगड़ा परिवार ने। आचार्य श्री के आशीर्वाद से गुरु अर्चन कलश स्थापना श्री राजेन्द्र जी सुमन जी छाबड़ा ने की।
कोलकाता के राकेश सेठी ने मंच संचालन करते हुए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में अशोक सेठी बंगलोर, पारस जी इचलकरंजी, बेलगांव के राजू जी कट्टगन्नावर, राजू जी जक्कन्नावर, पुष्पक जी हनमन्नावर, कोलकाता ( हावड़ा) के बाबूलाल जी पाटनी, इंदौर के श्री समर कंथली, विशाल जी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।
सभा के पश्चात् अठाई व्रत को धारण किये सभी तपस्वी व्रतियों का निरंतराय पारणा सम्पन्न हुआ।