तपस्वी सम्राट की दुरदृष्टिता व जीर्णोद्धार का सीमांकन होते ही प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी के पद अंगूठे से निकली जलधारा

आज से लगभग 32 वर्ष पूर्व सन 1988-89 में युगश्रेष्ठ आचार्यशिरोमणी तपस्वी सम्राट श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज ससंघ का विश्व विख्यात अतिशयकारी तीर्थ क्षेत्र श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ पर आगमन हुआ था वहाँ पर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में मानस्तम्भ का शिलान्यास हुआ ,गुरु आज्ञा से यह मानस्तम्भ मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान के जिनालय से लगभग 150 फिट से अधिक दूरी पर बनाया गया तब हर कोई अचंभित था आखिर मानस्तम्भ “भगवान व जिनालय” से इतना दूर क्यो??हर जगह मानस्तम्भ जिनालय के निकट ही बनता है फिर यहाँ तपस्वी सम्राट ने इतनी दूरी क्यो रखवाई??? यह जिज्ञासा 32 वर्षो तक पहेली ही बनी रही लेकिन तपस्वी सम्राट ने तो अपने ज्ञान में ये ज्ञात कर लिया था कि आज से 32 वर्ष बाद यही मूल जिनालय सहित अन्य जिनालय भी जीर्णोद्धार पूर्वक विस्तृत होकर मानस्तम्भ के अत्यंत निकट आ जाएंगे।


दादागुरु वात्सल्यरत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी भगवन्त के मार्गदर्शन में जहाँ चार दशकों पूर्व भव्य चौबीसी का निर्माण हुआ वही 32 वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेव तपस्वी सम्राट के मार्गदर्शन में मानस्तम्भ का निर्माण हुआ और अब उन्ही के लघुनन्दन चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुदेव के सुसानिध्य में सम्पूर्ण मूल जिनालयो का जीर्णोद्धार हो रहा है जिसके अंतर्गत दिनांक 27 जुलाई को जीर्णोद्धार का सीमांकन हुआ उसमे मूलनायक अतिशय जिनालय व समीपस्थ शांति-कुन्थु-अरह जिनालय मिलाकर विस्तृत होकर 151 फिट लम्बा व 51 फिट चौड़ा मन्दिर हो जाएगा।
इसके सीमांकन होते ही जिनालय के यक्ष गण भी हर्षित हो उठे व अतिशयकारी भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के पद अनूठे से स्वतःजलधारा करने लगे जिस तरह नागकुमार देव ने स्वप्न में आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के पद अनूठे की आराधना कर तीर्थ पर पधारने का अनुरोध किया था ठीक वैसे ही भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के अंगूठे से घण्टो भर तक जल धारा स्वतः होती रही।

महातिशयकारी श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की जय
श्री आदि-कीर्ति-विमल-सन्मति-सुनील गुरुभ्यो नमः

🖊️शब्दसुमन-शाह मधोक जैन चितरी🖊️

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