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साधु प्रवचन देने से पहले उसको अपने अंतर में उतारें

साधु प्रवचन देने से पहले उसको अपने अंतर में उतारें

(आगम प्रमाण सहित विस्तृत विवेचन)

जैन धर्म में साधु का स्थान सर्वोच्च है क्योंकि वह धर्म का जीवंत रूप है। साधु का प्रवचन तभी प्रभावशाली होता है, जब वह उनके आत्म-आचरण की सुगंध से सुवासित हो।
यदि साधु केवल शास्त्र पढ़कर, या दूसरों के कथन सुनकर शब्द दोहराएँ, लेकिन उनका जीवन उन शब्दों का प्रमाण न बने, तो वह प्रवचन आत्मा तक नहीं पहुँचता।

(क) दिगंबर आगम दृष्टि से
1. तत्त्वार्थसूत्र (9/6) — “आचारज्ञानवैराग्यबलसम्पन्नः साधुः धर्मदेशना कुर्यात्”
• अर्थ: जो आचरण, ज्ञान और वैराग्य के बल से सम्पन्न है, वही धर्म का उपदेश करे।
• स्पष्ट है कि उपदेश की पात्रता पहले आचरण और वैराग्य से सिद्ध होती है।
2. मोक्षशास्त्र (उमास्वाति कृत) — “यथोक्तं आचरन् शास्त्रं, यथाश्रुतं तद्भाषते”
• अर्थ: साधु वही कहे जो वह स्वयं आचरण में लाता है।
3. प्रवचनसार (कुन्दकुन्दाचार्य) — “अपरोक्षानुभवहीनो, वचनेन न सिध्यति”
• यदि साधु को आत्मानुभव नहीं, तो केवल वाणी से मोक्षमार्ग सिद्ध नहीं होता।

(ख) श्वेतांबर आगम दृष्टि से
1. आचारांग सूत्र (प्रथम शतक, सूत्र ५) — “जो कहे सो करे, जो करे सो कहे, वही मुनि है”
• यह सीधा निर्देश है कि साधु का वचन और आचरण में एकरूपता होनी चाहिए।
2. सूत्रकृतांग सूत्र (२/५) — “अप्पणो अनुस्साए, ण वि अन्येण विण्णाए”
• अर्थ: पहले स्वयं के भीतर ज्ञान को धारण करे, फिर दूसरों को सिखाए।
3. दशवैकालिक सूत्र (अध्याय ८) — “पहिले अप्पा सुच्छं, पच्छा अण्णं सुद्धाए”
• पहले अपने आत्मा को शुद्ध करे, फिर दूसरों को शुद्धि का उपदेश दे।


• शब्द और जीवन का विरोधाभास — श्रोता का विश्वास टूट जाता है।
• धर्म की अवमानना — जब साधु का जीवन विपरीत दिशा में हो, तो प्रवचन मजाक बन जाता है।
• आत्मिक पतन — साधु स्वयं भी भीतर से शिथिल हो जाता है, क्योंकि वाणी और अंतर में फासला बढ़ता है।

साधु का प्रवचन केवल जिह्वा की गति नहीं, बल्कि हृदय की अनुभूति है। जैसे जल में भीगा वस्त्र स्वयं टपकता है, वैसे ही धर्म में भीगा साधु का हृदय प्रवचन के रूप में झरता है।
दिगंबर और श्वेतांबर — दोनों परंपराओं में यही मूल शिक्षा है: पहले जीओ, फिर कहो।

नितिन जैन,

संयोजक — जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल (हरियाणा),
जिलाध्यक्ष — अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन, पलवल, मोबाइल: 9215635871

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