देवाधिदेव 24 वे तीर्थंकर श्री 1008 महावीरस्वामी का केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

🙏🎺🥁🇧🇴⛺️🕉️देवाधिदेव 24 वे तीर्थंकर श्री 1008 महावीरस्वामी का केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव :तिथि वैशाख शुक्ल दशमी, वी. सं. 2547, शनिवार , दि.22 मई, 2021सभी धर्मप्रेमियों को हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाये🌳🌲🌴🍀☘️🌿🌾🌵🌳��🌴🙏

🚩केवलज्ञान कल्याणक का अर्घ्य🚩

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“प्रभुने प्रथम आहार राजा कूल के घर में लिया।

वैशाख सुदि दशमी तिथि केवलज्ञान प्राप्त किया।।

श्रावण वदी एकम तिथि गौतम मुनी गणधर बनें।

तब दिव्य-ध्वनि प्रभुकी खिरी हम पूजते हर्षित हुए। ।

ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लादशम्यां श्रीमहावीरजिनकेवलज्ञान-

कल्याणकाय नम: अर्घ्यं •••।”

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🙏🕉 श्रीमहावीर जिनराज को केवलज्ञान🕉 🙏

🌸लगभग 2600 वर्ष पूर्व नाथवंशीय राजा सिद्धार्थ बिहार प्रदेश के कुण्डलपुर में राज्य करते थे, उनकी रानी का नाम त्रिशला (प्रियकारिणी) था। कुण्डलपुर में अवस्थित नंद्यावर्त महल उनका निवास स्थान था। यह 7 मंजिला महल अत्यंत रमणीक था।

💮चैत्र शुक्ला तेरस की रात्रि में रानी त्रिशला ने सूर्य से भी अधिक तेजस्वी, तीन लोक के नाथ तीर्थंकर शिशु को जन्म दिया।

🌹युवावस्था को प्राप्त करने पर एक दिन महारानी त्रिशला ने उन्हें विवाह करने के लिए समझाया परन्तु युवराज महावीर ने विवाह ना करके जैनेश्वरी दीक्षा लेकर मुक्तिरूपी कन्या का वरण करने का अपना संकल्प माँ को बताया, जिससे माता त्रिशला बहुत दुःखी हुई। किन्तु महावीर ने उन्हें समझा-बुझा कर शांत किया और देवों द्वारा लाई पालकी में बैठकर दीक्षा लेने हेतु वन में चले गये।

🌺30 वर्ष की अवस्था में भगवान ने मगसर कृष्णा दशमी को कुण्डलपुर के निकट मनोहरवन में सालवृक्ष के नीचे पंचमुष्टि केशलोंच करके जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली।

🌻एक बार महामुनि महावीर उज्जयिनी नगरी के श्मशान घाट (अतिमुक्तक वन) में ध्यान लीन थे। तभी एक रुद्र वहाँ आया और उन पर भयंकर उपसर्ग करने लगा परन्तु धीर-वीर महामुनि अपने ध्यान से किंचित् भी विचलित नहीं हुए। उनके इस साहस और धैर्य को देखकर रुद्र अत्यन्त प्रभावित हुआ और अनेक प्रकार से उनकी पूजा करके उन्हें ‘महति महावीर’ नाम प्रदान किया।

🌼महावीर को तपस्या करते हुए लगभग 12 वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन वे बिहार प्रान्त में (कुण्डलपुर के पास) ज्रुम्भिका गाँव के निकट ऋजुकूला नदी के तट पर गहरे ध्यान में लीन थे। ध्यान की परमविशुद्धि से उन्होंने चारों घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। यह वैशाख शुक्ला दशमी का दिन था जब महावीर अरिहंत परमेष्ठी बन गये। इन्द्र ने तत्क्षण ही कुबेर को समवसरण बनाने की आज्ञा दी। भगवान की दिव्य प्रवचन सभा ‘समवसरण’ कहलाती थी, जिसकी 12 सभाओं में बैठकर मनुष्य, देवता, पशु-पक्षी आदि सभी भगवान की ॐकारमयी दिव्यध्वनि का पान करते थे। यह समवसरण पृथ्वी से 20,000 (बीस हजार) हाथ ऊपर अधर आकाश में रहता था।

🌷इन्द्रभूति ब्राह्मण अपने 500 शिष्यों के साथ राजगृही के विपुलाचल पर्वत पर स्थित भगवान के समवसरण में पहुँचे, उनका सारा मान भंग हो गया और वे तुरंत जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर महावीर के प्रथम गणधर बन गये। उसी समय केवलज्ञान होने के 66 दिन बाद श्रावण कृष्णा एकम के दिन भगवान महावीर की प्रथम दिव्यध्वनि खिरी और तब से ही यह दिवस ‘वीरशासन जयंती दिवस’ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। भगवान की दिव्यध्वनि 718 भाषाओं में खिरती थी जिससे प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी भाषा में भगवान की देशना ग्रहण कर लेते थे। इन्द्रभूति गौतम गणधर ने भगवान की दिव्यध्वनि को द्वादशांगरूप में निबद्ध किया।

⚘राजगृही नगरी की घटना है कि एक बार एक मेंढक अपने मुख में कमल की पांखुड़ी दबाए अत्यन्त भक्तिभाव पूर्वक समवसरण में विराजमान भगवान महावीर के दर्शन करने के लिए विपुलाचल पर्वत की ओर जा रहा था। मार्ग में वह राजा श्रेणिक के हाथी के पाँव के नीचे दबकर मर गया। भगवान की भक्ति के प्रभाव से वह तत्क्षण ही स्वर्ग में जाकर देव हो गया। राजा श्रेणिक के पहुँचने से पूर्व ही समवसरण में पहुँचकर मुकुट में मेंढक के चिन्ह से युक्त वह देव भक्ति में अत्यन्त तन्मय होकर नृत्य करने लगा। उसे ऐसी भक्ति करते देखकर राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर से उसके बारे में पूछा, तब गौतम गणधर ने बताया कि राजन् ! एक मेंढक अभी-अभी आपके हाथी के पग तले दबकर मरा है और भक्ति के प्रभाव से देवता बनकर यह यहाँ आया है। जिनभक्ति की इस महिमा को जानकर सभी लोग अत्यन्त प्रभावित हुए।

☀️एक दिन महासती चन्दना अपने माता-पिता के साथ राजगृही नगरी में भगवान महावीर के समवसरण में आई और उत्कट वैराग्यभावना से उन्होंने प्रथम आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर ली। अनन्तर उन्होंने गणिनीपद को प्राप्त किया और भगवान महावीर के समवसरण की छत्तीस हजार आर्यिकाओं में प्रमुख हो गई। भगवान महावीर के समवसरण में श्री इन्द्रभूति आदि 11 गणधर, 14,000 मुनिराज, चंदना आदि 36,000 आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। भगवान के शासनयक्ष मातंगदेव एवं शासनयक्षी सिद्धायिनी देवी हैं।

⭐मगध के सम्राट् राजा श्रेणिक पूर्व में बौद्ध धर्म के अनुयायी थे परन्तु अपनी पत्नी चेलना (महावीर की गृहस्थावस्था की मौसी) के बार-बार समझाने पर वह जैनधर्म की ओर आकृष्ट हुए और धीरे-धीरे जैनधर्म के शाश्वत एवं सर्वोदयी सिद्धान्तों को जानकर भगवान महावीर के कट्टर अनुयायी बन गये। वह भगवान के समवसरण में जाकर उनके प्रति अपार भक्ति किया करते थे। समवसरण के मुख्य श्रोता के रूप में श्रेणिक ने भगवान से साठ हजार प्रश्न किए। इन प्रश्नों के उत्तर में खिरी भगवान की दिव्यध्वनि के आधार पर ही आज का उपलब्ध श्रुतज्ञान निबद्ध हुआ है।

🌟भगवान महावीर ने 30 वर्षों तक सम्पूर्ण आर्यखण्ड में असंख्य जीवों को धर्म का उपदेश प्रदान किया।

(संकलक:आनंद जैन कासलीवाल)

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