अन्तर्मना उवाच- आचार्य प्रसन्नसागर जी महाराज

सुख, शांति, प्रेम और प्रसन्नता का अर्थ लड़ना झगड़ना नहीं है, बल्कि. उन बुराइयों से कुशलता पूर्वक दूर हो जाना, जिन बातों से सुख, शांति, प्रेम, प्रसन्नता कम हो रही हो। क्योंकि अभिमान की ताकत फरिश्तों को भी शैतान बना देती है। और सरलता, विनम्रता, प्रसन्नता साधारण व्यक्ति को भी फरिश्ता बना देती है।

मैं मानता हूँ — संसार में बुराइयां है। पर तुमने कभी सोचा कि बुराइयां क्यो‍ है? दुनिया में बुराइयां इसलिये नहीं है कि बुरे आदमी ज्यादा बोलते हैं बल्किु इसलिये है कि भले आदमी समय पर चुप रह जाते हैं।

आज हमने गलत को गलत कहने की हिम्मात खो दी है। यही कारण है कि बुराइयां हमारे सिर पर चढ़कर बोल रही है। हमें गलत को गलत कहने की हिम्मत बरकरार रखना है। जब तक हममें गलत को गलत कहने की हिम्मत होगी तब तक हमारा भविष्य। सुरक्षित है। अन्यथ…….।

परन्तु कब किससे कहां कैसे कहना है, इसका विवेक होना चाहिए। अन्यथा आपकी सही बात, गलत वक्त पर बोलने से आप पर भारी पड़ सकती है। ईमानदार और साहसी लोगों से ही घर, परिवार और समाज का भला हो सकता है। सिर्फ ईमानदार और साहसी होना ही पर्याप्त नहीं है, साथ में हिम्मत भी चाहिए बोलने और सुनने की।

क्योंकि–

दिल के साफ और सच बोलने वाले इंसान, अक्सर अकेले मिलते हैं..

यह जिन्दगी का कड़वा सच भी है…!!!

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