निस्पृहि सन्त आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज के दृढ़ नियम व श्री समाज ने पेश की अनूठी मिसाल

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निस्पृहि सन्त आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज के दृढ़ नियम व श्री समाज ने पेश की अनूठी मिसाल पुनर्वास कॉलोनी सागवाडा का होनहार 19 वर्षीय युवा नमन सुपुत्र महिपाल जी जैन जिस पर मात्र 18 वर्ष की वय में परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आन पड़ी थी।

दिनांक 2 मार्च सन 2020 को जब श्री समाज पुनर्वास कॉलोनी ने अपने विमलनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में पूज्य आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज ससंघ की निश्रा व मार्गदर्शन के अनुरूप सर्व आडम्बरो से रहित विशुद्धता व भक्ति पूर्वक अष्ट दिवसीय सिद्ध चक्र विधान रखा गया।

विधान के प्रथम दिन ही 2 मार्च 2020 को युवा नमन के स्व.पिता महिपाल जी की प्रथम पुण्यतिथि थी उसके मन मे प्रातः से ही भाव जागृत हुए की आज मन्दिर जी मे विधान भी है पिताजी की पुण्यतिथि भी है अतः आज की शांति धारा पूज्य पिता श्री के नाम से समर्पित करा दी जाए इसी शुभ भावना के साथ शुद्ध पक्षाल वस्त्रों में वह जिन मन्दिर पहुचा जहाँ आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज के शुभ सानिध्य में अभिषेक-विधान पूजा की तैयारी हो रही थी। तभी उस नव युवा ने समाज के श्रेष्ठी से कहा कि आज की शांति धारा मेरे स्व पिता जी के नाम से समर्पित करना चाहता हूं, जिस पर श्रेष्ठी ने कहा कि सिद्धचक्र विधान है अनेक लोगो की भावना है इसलिए बोली ही लगेगी तो आप बोली बढ़ाकर ले लेना श्रेष्ठी खड़े होकर बोली प्रारम्भ करने लगे जैसे ही बोली प्रारम्भ करने लगे तब आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज ने रोकते हुए कहा की धर्म के नाम पर व्यापार,दबाव व प्रलोभन को बढ़ावा देने वाली इस बोली प्रथा को बंद करो आपको ज्ञात है कि मेरे किसी भी सानिध्य में बोली नही लगाई जाती तो फिर बोली क्यो?

श्रेष्ठी ने कहा कि गरूदेव आज तीन चार महानुभावों की भावना है शांतिधारा समर्पित करने की इसमे ये युवा भी है जो अपने स्व.पिता की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर शांतिधारा लाभ लेना चाहता है अतः किसे चुने???

इस पर आचार्य श्री ने कहा इस बालक की नेक भावना को धन से बेचा या खरीदा नही जा सकता है यदि धन बल से अन्य कोई बढ गया तो इस बालक की भावना का क्या होगा??,और मेरे सानिध्य में कोई भी आयोजन आडम्बर रहित होता है जिसमे प्रतिज्ञा पूर्वक गाजा,बाजा साउंड,टेंट-बेंड,म्यूजिकल पार्टी होल्डिंग पेंपलेट कुछ नही होता तो फिर इन बोलियों की आवश्यकता क्या है??

अतः दान स्वेच्छा से ,बिना दबाव,बिना प्रलोभन व बिना वर्चस्व से होना चाहिए जो की हर कोई कर सके जबकि बोली में तो सिर्फ धनवान ही लाभ ले पायेगा जिससे “धन व धनवान” हावी और “भाव व गुणी” नगण्य रहेगा।

अतः शांतिधारा जिनको भी करनी है वे बिना बोली के सामर्थ्यता नुसार बिना दबाव के स्वेच्छिक दान दे सके ऐसी परम्परा होनी चाहिए औऱ एक से ज्यादा सदस्य हो तो वे सामूहिक नाम से भी कर सकते है।

जिस पर उस नव युवा नमन ने स्वेच्छा से विधान पूजा में एक कट्टा चावल देने की घोषणा की और श्री समाज ने उसकी भावना का बहुमान करते हुए शांतिधारा का लाभ प्रदान किया।

अष्ट दिवसीय पूरा विधान इसी तरह बिना बोली के स्वेच्छा दान से भक्ति भाव पूर्वक सम्पन्न हुआ।

पूज्य आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज की नेक प्रतिज्ञा से एक नव युवा अपने शुद्ध भावों को कामयाब कर पाया तो साथ ही श्री समाज पुनर्वास कॉलोनी सागवाडा भी इस प्रेरणा को पाकर धन्य हो गयी।

पूज्यापाद स्वाध्याय तपस्वी वैज्ञानिक श्रमणाचार्य 🙏श्री कनकनन्दी जी 👌👌गुरूराज🙏 को कोटिशः नमन

🖋️शब्दसुमन🖋️

नमनकर्ता-श्री अंतराष्ट्रीय जैन विद्वत संघ व अहिंसा मिशन फाउंडेशन

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