अन्तर्मना उवाच
आखा तीज — डालो मुक्ति का बीज स्वयं कृतं कर्म यदात्मना परा फलं तदीयं लभते शुभा शुभम्
अच्छे बुरे कर्म का फल जीव को स्वयं को भी भोगना पड़ता है। राजा हो या रंक, गरीब हो या अमीर, भिखारी हो या सम्राट सबको कर्म ने घेरा है। इसलिए कोई भी कर्म करो तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। और कार्म उदय में आ जाये तो समता भाव रखना चाहिए। क्यों कि जिन्दगी में बुरे दिन कभी भी, किसी के भी आ सकते हैं।
जिन्दगी में सुख के लम्हें तो हवा की चाल जैसे गुजर जाते हैं मगर दु:ख तो जैसे आकर के ठहर ही जाता है। इसलिए बुरे के लिये तैयार रहो जैसे कोरोना –? किसने सोचा था कि हमारे देश का इतना बुरा वक्त आयेगा –? बेटा कभी भी मुख मोड़ सकता है। दोस्त कभी भी धोखा दे सकता है। किस्मत कभी भी रूठ सकती है, दुनिया कभी भी छुट सकती है। जिन्दगी में बहुत थोड़े से ही लोग ऐसे हैं जो दु:ख और दर्द की कड़क धूप में साया बनकर मदद करते हैं। बाकी तो खुदगर्ज होते हैं।
इसलिए —
दुनिया दारी को छोड़ के अपने
लक्ष्य के पीछे भागते रहो…
लोगों का सिर्फ वक्त आता है,
आपका दौर आयेगा…!!!