दिगम्बर जैन मंदिर परिसर में गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि इच्छाओं का कभी अंत नही होता एक इच्छा की पूर्ति होती हैं तो अनेक इच्छाएं उपस्थित हो जाती हैं महावीर पार्क में भूमि पूजन कर पंचकल्याणक का भव्य श्री गणेश हुआ
संसारी जीव इच्छाओं का दास बनकर कोलू के बैल की तरह नाना प्रकार के चक्कर खा रहा हैं अनादि काल से पंच परावर्तन करता हुआ यह जीव अनेक कष्टों को भोग रहा हैं और आज तक इसकी इच्छाओं की पूर्ति न हो सकी ये बात हमेशा ध्यान रखना की इस संसार में दुख ही दुख हैं सुख नही हैं मात्र सुखाभास हैं ये सुख व दुख सब मन के खेल हैं मूर्छा और ममता के कारण सुख दुख हमारे ही बनाए हुए घोंसले हैं बस उनमें रहकर हम अपने को सुखी व दुखी मानने लगते हैं
उन्होंने बताया कि वे प्राणी धन्य हैं जिन्होंने इच्छा रूपी पिशाच को जीतकर स्वाधीनता रूप परमामृत का पान किया हैं जो इच्छाओं का दास बन गया हैं वह दुखी तो रहेगा ही भला दास के हिस्से में सुख आ भी कहाँ से सकता हैं इसलिए तू अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लें और पूर्ण निराकुल दशा को प्राप्त करो ध्यान रखना इच्छाओं का गड्डा बहुत गहरा हैं आज देखा जाता हैं कि व्यक्ति पेट भर क्या गले तक भोजन कर ले तो भी व्यक्ति की इच्छाएं अनवरत जारी रहती हैं यह बलस्त का पेट कभी भरता ही नही हैं दिन रात बकरी की तरह उसका मुख चलता हैं फिर भी पेट नही भर पाता आज कैसी बिडंबना हैं कि व्यक्ति पहले पेट भरने की सोचता हैं जब पेट भर जाता हैं तो पेटी भरने की कोशिश करता हैं और फिर बैंक बैलेंस की सोचता हैं
आश्चर्य तब अधिक होता हैं जब सब कुछ मिल जाये तो फिर इच्छाएं समाप्त नही हो पाती अतः हम सभी अपनी इच्छाओं पर ब्रेक लगाकर अपना जीवन संयममय बनाये
रिपोर्ट/अंशुल कुमार