अद्भुत है दिल्ली का अदृश्य नाभेय जिनालय

(जैनदर्शन और हिन्दू अध्ययन के अध्येताओं ने किया हेरिटेज वॉक )

शैक्षिक भ्रमण, विद्यार्थियों को रोचक तरीके से भारतीय इतिहास,संस्कृति और धर्म को समझने का एक कारगर और आकर्षक उपाय है । पुस्तकें मात्र सैद्धांतिक ज्ञान देती हैं, जबकि शैक्षिक भ्रमण वास्तव में उस स्थान पर जाकर प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करता है ।

जैन धर्म,जिनायतन,पूजन अभिषेक, तीर्थंकर ,जैन मूर्तिकला और पुरातत्व के विशेष साक्षात्कार के लिए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग एवं हिन्दू अध्ययन विभाग के विद्यार्थियों एवं अध्यापको ने जैन हेरिटेज वॉक का आयोजन किया।

जिसके तहत सर्वप्रथम तीर्थंकर महावीर के अनुपम तीर्थ अहिंसा स्थल,महरौली में सभी लोग प्रात:काल एकत्रित हुए । वहाँ आचार्य कुंदकुंद समयसार मंदिर में विराजमान भगवान् के अभिषेक और पूजन के साक्षात् दर्शन किये । उसके अर्थ और महत्त्व पर प्रो अनेकांत जैन जी द्वारा प्रकाश डाला गया। अनंतर ऊपर खुले आकाश में विराजमान तीर्थंकर महावीर की विशाल प्रतिमा के समक्ष गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें जैनदर्शन विभाग की छात्राओं ने सुंदर भजन प्रस्तुत किया ।

प्रो अनेकांत जी ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि विद्यार्थियों और अध्यापकों का इस तरह समवेत होकर तीर्थ भ्रमण एक अद्भुत अनुभव है जो हमेशा याद रहेगा ।
प्रो.वीरसागर जैन जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ पूरे विश्व में मानव अधिकार की बात करता है परंतु जैन धर्म सभी जीवों के अधिकार की बात करता है वह उनके अनुयायियों के विचारों को बहुत महान बना देता है।

प्राकृत विभाग की प्रो.कल्पना जैन ने सभी को राग द्वेष का त्याग करके साम्यभाव धारण करने की कला बतायी। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के प्रो. प्रवीण जैन एवं श्रीमती सुमनलता जैन तथा अहिंसा स्थल के श्री अशोक जैन ने सभी का स्वागत किया और विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया। स्वल्पाहार के पश्चात् कुतुबमीनार परिसर का सभी ने एक साथ भ्रमण किया।

प्रो.अनेकान्त कुमार जैन जी ने अपनी शोध के आधार पर कुतुबमीनार के जैन इतिहास,वहां की जैन भौगोलिक संरचना और अनेक नए तथ्यों से अवगत कराया । उन्होंने बताया कि यहाँ पहले बहुत बड़ा नाभेय जिनालय था,जिसमें आदिनाथ भगवान् की एक विशाल प्रतिमा विराजमान थी। उन्होंने यहाँ निर्मित उन स्थानों की तुलना पांडुकशिला और सहस्रकूट जिनालय से की जिसे अंग्रेजों का आराम स्थल बताकर उपेक्षित किया जाता है । उन्होंने कई प्रमाणों के आधार पर बताया कि यहाँ विशाल सुमेरु पर्वत की रचना थी। जिसे कुतबुद्दीन ऐबक ने बदल कर कुतुबमीनार बना दिया । सभी ने नाभेय जिनालय के अवशेषों का,दीवार पर उकेरी गईं तीर्थंकर मूर्तियों का निरीक्षण किया और चित्र भी लिया।

सभी ने जैन धर्म के महत्त्व ,इतिहास और संस्कृति को बहुत करीब से जाना और आपसी संवाद के माध्यम से उस पर सार्थक विमर्श भी किया ।

  • शुभी जैन ,आचार्य(MA) प्रथम वर्ष ,जैनदर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली

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