आचार्य विद्यानंद जी की प्रेरणा से मैं प्राकृत भाषा के प्रति समर्पित हुआ – आचार्य सुनीलसागर

(कुन्दकुन्द भारती में प्राकृत विद्वतसंगोष्ठी)

12फरवरी,कुन्दकुन्द भारती ,नई दिल्ली में आचार्य सुनील सागर महाराज का ससंघ पदार्पण हुआ ।
इस अवसर पर 13 फरवरी 24 को प्राकृत विद्वतसंगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस अवसर पर आचार्य श्री ने अपने प्रवचन प्राकृत भाषा में किये ।
उन्होंने अपना उद्वोधन प्रदान कर प्राकृत को सीखना देश की नई पीढ़ी के लिए आवश्यक बताया ।उन्होंने कहा कि प्राकृत हमारी मातृ भाषा है जो देव भाषा से भी अधिक बच्चों से जुड़ी हुई है। आचार्य श्री विद्यानंद जी ने इस सुंदर परिसर को प्राकृत मय बना दिया है।उन्होंने कहा कि आचार्य विद्यानंद जी की प्रेरणा से मैं प्राकृत भाषा के प्रति समर्पित हुआ । यहाँ से प्रकाशित प्राकृत विद्या को मैं निरंतर पढ़ता रहा हूँ ।

प्रो जयकुमार उपाध्ये जी ने अपने वक्तव्य में आचार्य विद्यानंद जी द्वारा कुन्दकुन्द भारती के माध्यम से की गई सेवाओं को विस्तार से बताया । प्रो वीरसागर जैन जी ने कहा कि यहाँ से एक शोध पत्रिका प्राकृत विद्या निकलती है जो शोध के क्षेत्र में कीर्तिमान है ।उन्होंने यहां से प्रकाशित अन्यान्य साहित्य से आचार्य श्री को परिचित करवाया । प्रो अनेकांत कुमार जैन ने कहा कि प्राकृत के प्रकांड विद्वान् आचार्य विद्यानंद जी की तपस्थली में प्राकृत के महाकवि आचार्य सुनील सागर जी का आगमन निश्चित ही एक महान् संयोग है । प्रो कल्पना जैन ने कहा कि आचार्य श्री की प्रेरणा से हमारे विश्वविद्यालय में प्राकृत विभाग की स्थापना हुई थी ।

(आचार्य सुनीलसागर जी ने ससंघ संस्कृत विश्वविद्यालय का किया भ्रमण )

इस अवसर पर श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली के कुलपति प्रो मुरली मनोहर पाठक जी भी आचार्य संघ के दर्शनार्थ पधारे तथा उन्होंने आचार्य श्री की कृति ‘लाल किले से’ का विमोचन भी किया । उन्होंने श्री संघ को विश्वविद्यालय परिसर में आमंत्रित किया तथा स्वयं मुख्य द्वार पर पूरे संघ की अगवानी की । विश्वविद्यालय के द्वार पर उनके साथ जैनदर्शन विभाग के प्रो वीरसागर जैन जी ,प्रो अनेकांत कुमार जैन जी ,प्रो कुलदीप ,प्राकृत विभाग की प्रो कल्पना तथा दोनों विभाग के सभी विद्यार्थी भारी मात्रा में उपस्थित थे । सभी ने आचार्य श्री को ससंघ पूरे विश्वविद्यालय का भ्रमण करवाया । पूरे भ्रमण के दौरान कुलपति जी उन्हें प्रत्येक स्थान का परिचय देते रहे । आचार्य श्री उस स्थान पर भी गए जहाँ विशाल शिलापट्ट पर आचार्य विद्यानंद जी का नाम खुदा है कि उनके कर कमलों से सारस्वत साधना सदन का लोकार्पण हुआ । संस्कृत विश्वविद्यालय में इतिहास में प्रथम बार इतने बड़ी संख्या में दिगम्बर मुनि संघ का समागम प्राप्त हुआ ।
इसके अनन्तर पूरे संघ का कालका जी जैन मंदिर हेतु विहार हो गया ।

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