‘जिनधर्म रक्षक’ के सदस्य तत्त्वम् जैन एवं अतिशय जैन ने ‘सर्वधर्म प्रार्थना’ में किया ‘जैनधर्म’ का प्रतिनिधित्व

‘जिनधर्म रक्षक’ के सदस्य तत्त्वम् जैन एवं अतिशय जैन ने ‘सर्वधर्म प्रार्थना’ में किया ‘जैनधर्म’ का प्रतिनिधित्व

गांधी स्मृति दर्शन समिति तीस जनवरी मार्ग, दिल्ली के कीर्ति मंडपम् में गिल्ड फार सर्विस एवं वार विंडो एसोसिएशन के तत्त्वावधान अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ‘सर्वधर्म प्रार्थना एवं भजन संध्या’ का आयोजन हुआ। भारत के अनेक विशिष्ट व्यक्तियों के सानिध्य में आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना में जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘जिनधर्म रक्षक फाउंडेशन’ के विशिष्ट सदस्य तत्त्वम् जैन एवं अतिशय जैन ने जैनधर्म के मूल सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा में निबद्ध णमोकार महामंत्र एवं चौबीस तीर्थंकर स्तुति की प्रशंसनीय प्रस्तुति दी।

जिनधर्म रक्षक की संस्थापिका डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव ने बताया कि अनेक बच्चों के ऑडीशन के बाद ही जिनधर्म रक्षक की टीम ने इन दो बच्चों का चयन किया था और इन्हें जैन प्रार्थना की विशेष तैयारी करवाई गई थी और जब इतने विशिष्ट अतिथियों एवं अनेक दर्शकों से भरे विशाल सभागार में बच्चे जैन प्रार्थना कर रहे थे तो सभी को अत्यंत गौरव की अनुभूति हो रही थी । डॉ. इन्दु ने बताया कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय मनमोहन सिंह जी की धर्मपत्नी गुरशरण कौर , गांधी स्मृति के उपाध्यक्ष डॉ. विजय गोयल, द गिल्ड फार सर्विस की अध्यक्षा मीरा खन्ना, प्रसिद्ध अभिनेत्री सुषमा सेठ, सयेदा हामिद,रमा वैद्यनाथन, सुजाया कृष्णन,वार विंडोज एसोसिएशन की अध्यक्षा दमयंती ताम्बे, कमल लाल आदि ने जिनधर्म रक्षक फाउंडेशन के सदस्य दोनों बच्चों की सुंदर प्रस्तुति के लिए आशीर्वाद दिया। सर्वधर्म प्रार्थना में जैन, हिन्दू, मुस्लिम,सिख, ईसाई,बहाई, पारसी आदि सभी धर्म के बाल प्रतिनिधियों ने अपने-अपने धर्म की प्रार्थनाएं प्रस्तुत कीं एवं बाद में प्रसिद्ध गायिका सुधा रघुरमन ने भजनों की भावपूर्ण शास्त्रीय प्रस्तुति दी ।

दिल्ली के प्रसिद्ध समाजसेवी हेमचंद जैन के पौत्र कुमार तत्त्वम् जैन ने जैन प्रार्थना में सर्वप्रथम णमो जिणाणं -जय जिनेन्द्र कहा फिर आदिनाथ भगवान, महावीर स्वामी एवं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय बोलते हुए तत्त्वम् ने कहा कि “जैनधर्म एक विशुद्ध महान् आध्यात्मिक और पूर्ण: आस्तिक धर्म है । जैनधर्म के उपदेश आत्मकल्याण और विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करते हैं । जैनधर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के भाग्य का निर्माता है । व्यक्ति जन्म से नहीं, अपने कर्म से महान बनता है। आज विश्व शांति हेतु जैनधर्म के मूल सिद्धांत अहिंसा, सत्य,अचौर्य,अपरिग्रह, अनेकान्त, स्याद्वाद आदि सिद्धांतों की नितांत आवश्यकता है । इस युग में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने जन-जन को नई राह दिखाकर मोक्षमार्ग प्रशस्त किया है। पूरा विश्व इन सभी सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर आत्मकल्याण करे यही शुभभावना है।”
जिनधर्म रक्षक के सदस्य अतिशय जैन ने सर्वप्रथम “णमोकार महामंत्र” पढ़ा तथा णमोकार मंत्र की विशेषता बताते हुए कहा कि
सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा का “णमोकार महामंत्र” विश्व का सबसे प्राचीन मंत्र है । इस मंत्र में किसी विशेष भगवान का नाम न लेते हुए , अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं सभी सच्चे साधुओं को नमन किया गया है। इस मंत्र को सभी धर्म के लोग रोज़ पढ़ सकते हैं और अपने जीवन के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व का कल्याण कर सकते हैं ।

इसके बाद अतिशय जैन ने आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज द्वारा प्राकृत भाषा में रचित चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति पढ़ी और कहा कि “जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती, जिनके नाम से अपने देश का नाम “भारत” पड़ा ऐसी भारत भूमि को हम सभी नमन करते हैं। वर्तमान के चौबीस तीर्थंकरों के नाम स्मरण करते हुए सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा में चौबीस तीर्थंकर स्तुति के माध्यम से हम सभी ने प्रार्थना की । पूरे विश्व का कल्याण हो और सभी के मन में अहिंसा की भावना स्थापित हो यही मंगलकामना है। इसके बाद णमो जिणाणं -जय जिनेन्द्र, जयनम् जयतु शासनम् एवं जैनधर्म का जय कहते हुए दोनों बच्चों ने जैन प्रार्थना की सुंदर प्रस्तुति दी ।

“जिनधर्म रक्षक” के संस्थापक राकेश जैन एवं डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव ने बताया कि उनका उद्देश्य जैनधर्म के सभी परम्परा के बच्चों को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैनधर्म के प्रतिनिधि के रूप में तैयार करना है । अभी तक जिनधर्म रक्षक की विभिन्न कार्यशालाओं में दो हज़ार से अधिक बच्चों ने जैनधर्म – दर्शन – संस्कृति की रक्षा का संकल्प लिया है।

ज्ञातव्य है कि डॉ. इन्दु निरंतर अपने यूट्यूब चैनल,सोशल मीडिया,प्रिंट मीडिया एवं कार्यशालाओं के माध्यम से भी जैन समाज को जैन संस्कृति , प्राकृत भाषा, ब्राह्मी लिपि, शाकाहार आदि के क्षेत्र में समर्पित होकर कार्य करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं । उनका सपना है कि सभी गुरुओं के आशीर्वाद से वे पूरे विश्व के जैन बच्चों को एक परिवार की तरह जोड़कर जैन समाज की भावी पीढ़ी को जिनधर्म रक्षक के रूप में बचपन से ही तैयार कर दें ताकि बच्चे अभी से जैनधर्म-समाज-देश के लिए अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक और समर्पित रहें ।

उन्होंने देश-विदेश की जैन समाज से अपील की है कि वे अपने बच्चों को जैन प्रतिनिधि के रूप में बचपन से ही तैयार करने के लिए बच्चों को जिनधर्म रक्षक फाउंडेशन से जोड़ें।

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