हवन यज्ञ के साथ हुआ श्री 1008 सिद्धचक्रमहा मण्डल विधान का विधिवत समापन

डीमापुर से 08 किलो मीटर दूर पर अवस्थित असम राज्य के कार्बिआंगलॉन्ग ज़िला, खटखटी नगरी में श्री दि. जैन 1008 चन्द्रप्रभ नवग्रह अरिष्ट निवारक जिनालय में परम पूज्या गणिनी आर्यिका 105 श्री सुपार्श्वमति माताजी की सुयोग्य शिष्या परम पूज्या आर्यिका रत्न 105 श्री गरिमामति गंभीरमति माताजी ससंघ की पावन प्रेरणा एवं मंगल शुभ आशीर्वाद व सान्निध्य में, एवं विधानाचार्य ज्योतिर्भूषण प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री महेश जी ‘शास्त्री’ के कुशल निर्देशन में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना के साथ अनन्तान्त सिद्ध भगवन्तों की महा आराधना स्वरूप गत 19 मार्च 2024 से निरंतर गतिमान श्री श्री 1008 सिद्धचक्र महा मण्डल विधान एवं विश्व शांति कल्याणकारी महायज्ञ का आयोजन शनै: शनै: पूर्णता की ओर होता हुआ दिनांक 25 मार्च 2024 को पूर्णाहुति से समापन हुआ।

आर्यिका गरिमामति माताजी ने अपने उद्बोधन में आयोजित सिद्धचक्र महामण्डल विधान की महिमा बताते हुए कहा कि सिद्धचक्र विधान में सिद्धों की आराधना करने से व्यक्ति के रोग-शोक, ताप-संताप सभी नष्ट होने लगते हैं। इस विधान में बैठने मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदलने लगते हैं। मन, बुद्धि व चित निर्मल होने लगता है। जीव में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। विचारों में बदलाव आने लगता है और विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है और एक दिन व्यक्ति भव सागर से पार होने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। विधान के छठे दिन — सकल समाज के तत्वावधान में सौधर्म इंद्र – शचि इंद्राणी (राजेश-स्वीटी), श्रीपाल – मैना सुंदरी (कांति प्रसाद-प्रभा देवी), कुबेर – धनश्री (आकाश-निधि काला), महा यज्ञनायक (बबीता-ललित छाबड़ा), भरत चक्रवर्ती – सुभद्रा (रवि-बबीता सेठी), ईशान इंद्र (सोहनलाल-उर्मिला काला), सानत इंद्र (बिमल-रेणु सेठी), माहेंद्र इंद्र (महेश-सुखवती), लांतव इंद्र (भरत-भावना), ब्रह्म इंद्र (जीतू-कुसुम), आदि सभी इन्द्रों द्वारा 1024 अर्घ्य संगीतकार संस्कार जैन, वर्धमान म्यूजिकल ग्रुप, आगरा के स्वर लहरियों के साथ समर्पित किए गए जिससे मण्डल जी देखते ही बन रहा था। मण्डल जी में कुल 8+16+32+64+128+256+512+1024 = 2040 श्रीफल केसरिया झंडी के साथ चढ़ाए गए।

सांयकाल श्री जी की आरती, सिद्ध चक्र मंडल विधान की आरती, आचार्य गुरुवर वात्सल्य रत्नाकर 108 श्री विमल सागरजी की आरती तथा आर्यिका आर्यिका 105 गरिमामति गंभीरमति माताजी ससंघ की आरती बड़े ही धूमधाम से की गई। तत्पश्चात धनपति कुबेर इंद्र परिवार श्री रमेशजी संतोषजी काला, आकाश निधि काला बोकाजान द्वारा हाथी में सवार होकर श्री जी की आरती संपन्न की। साथ ही भरत चक्रवर्ती (रवि – बबीता सेठी) भी हाथी पर सवार होकर 7000 राजाओं के साथ पधारकर पांडाल की शोभा बढ़ाई।

आरती के पश्चात गुरु मां का पाद प्रक्षालन (पंचामृत अभिषेक) व गुरु पूजा (शास्त्र, वस्त्र भेंट) किया गया। तत्पश्चात पूर्वांचल की पावन भूमि पर प्रथम बार सभी इन्द्रों द्वारा विधान के उपलक्ष्य में, गुरु मां संघ के समक्ष वसंत उत्सव फूलों की होली से मनाया गया। हाथी पर सवार राज-प्रियल पहाड़िया रंगिया ने गुलाब और गेंदे के फूल बरसाए। संगीतकार सुमन काशलीवाल गुवाहाटी, गायक जिनेन्द्र जैन नालबाड़ी और आगरा के संगीतकार संस्कार जैन एंड पार्टी ने अपने संगीत के रसों से चांदनी रात में चार चांद लगा दिए। ऐसा प्रोग्राम पूरे पूर्वांचल में पहली बार देखने को मिला,, मानो आकाश से साक्षात देव इंद्र फूल बरसा रहे हों।

अष्टांहिका पर्व के आखरी दिन श्री जी व श्री सिद्धचक्र यंत्र का अभिषेक तथा महा शांतिधारा का सौभाग्य श्रीमान कांति प्रसाद प्रभा देवी छाबड़ा परिवार, डीमापुर द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास माहोल में की गई। तत्पश्चात भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने हवन यज्ञ में आहुति डालकर अपने कर्मों की निर्जरा की। पंडित महेश जी शास्त्री ने हवन-यज्ञ की महिमा बताते हुए कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं तथा मनवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। उन्होंने लोगों को अपना जीवन धर्ममय बनाने व सत्कर्म करने पर जोर दिया। तत्पश्चात श्री जी की शोभा यात्रा निकाली गई, जिसमें गजरथ ऐरावत हाथी सहित सभी श्रद्धालुओं ने भाग लिया जो देखते ही बन रहा था। उसके पश्चात पूज्या गरिमामति व गंभीरमति माता जी के चरणों में केशर लेपन सभी इंद्र परिवार व मौजूद भक्तों द्वारा रंगोत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया गया जो इस क्षेत्र के इतिहास में पहली बार देखी गई।

जैन मंदिर खटखटी के व्यवस्थापक समिति के सदस्य श्री रमेश काला, श्री रवि सेठी ने सभी आए हुए अतिथियों का सम्मान करते हुए जिन महानुभावों ने विशिष्ट फल और परंपरा से शाश्वत पद को देने वाली सिद्धों की महा पूजन में भाग लिया है एवं जिन्होंने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहयोग प्रदान किया, उन सभी के पुण्य की बहुत बहुत अनुमोदना की तथा आशा व्यक्त किया कि इसी तरह आगे भी आपका धार्मिक अनुष्ठानों में सहयोग बना रहेगा। इस विधान को भव्यतम सफल बनाने में माताजी सहित सभी की बहुत बहुत अनुमोदना करते हुए आशिर्वाद प्राप्त किया। माताजी ने अपने उद्बोधन में खटखटी नवग्रह जिनालय की पावन भूमि को अतिशय क्षेत्र से संबोधित करते हुए सभी भक्तों को खूब खूब मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

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