हर संप्रदाय में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता हैं
गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज के सानिध्य में महावीर कीर्ति जी महाराज का भव्य आचार्य पदरोहण दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया सर्वप्रथम शीतलनाथ महिला मंडल ने संगीतमय गुरु पूजन तथा नन्ही बालिकाओं द्वारा भक्ति नृत्य मंगलासरण के रूप में हुआ।
गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि हर संप्रदाय में गुरु का सबसे ऊंचा स्थान रखा जाता हैं हर व्यक्ति के जीवन में एक गुरु अवश्य ही होना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना जीवन की शुरुआत नही होती, ये सत्य हैं एक मां को अपने बच्चे के प्रति स्वार्थ होता हैं कि मेरा बेटा बड़ा बनकर मेरे बुढ़ापे की लाठी बनेगा लेकिन ऐसे गुरु ही होते हैं जो हर शिष्य को निःस्वार्थ भावना से धर्म की राह दिखाकर उसका कल्याण करते हैं।
महावीर कीर्ति जी महाराज एक उच्च कोटि के साधक थे उनकी श्रेष्ठ, तप त्याग, साधना अद्भुत ही थी जो 18 भाषाओं के ज्ञाता थे जिन्हें कई ऋध्दिया-सिध्दियां थी महावीर कीर्ति जी महाराज विहार में थे चलते चलते शाम हो गई गंतव्य स्थान पर नही पहुँचे क्योंकि दिगंबर संत रात्रि में चलते नही हैं महावीर कीर्ति महाराज ने कहा कि मैं इसके आगे नहीं जाऊंगा वहाँ वीयावान जंगल में कहा रुकेंगे यहां रात्रि में जंगली जानवरों का आवागमन होता रहता हैं। महाराज ने कहा मैं आगे नहीं जा सकता हूँ अब साथ में चल रहे लोगों को डर लग रहा था कि कहीं कोई घटना न घट जाए।
महाराज ने कहा आप लोग जाए और विश्राम करें कुछ लोग तो मान गए पर कुछ उसी जंगल में रुक गए महाराज जी ने पिच्छी की डंडी से एक रेखा खींच दी और गोला बना दिया और कहा अब आप लोग इस गोले से बाहर नहीं निकलना आधी रात में एक शेरनी अपने चार बच्चों को लेकर पास स्थित झरने पर पानी पीने आई शेरनी उस गोले की सीमा तक आई और लोग डर कर पेड़ पर चढ़ गए वह वाहर से ही चक्कर लगाकर वापस चली गई महाराज तो ध्यान में मग्न रहें सुबह सारी बात बताई तो महाराज ने कहा अगर आप सीमा से वाहर निकल जाते तो कुछ घटना घट सकती थी इसलिए सभी धर्म की सीमा में ही रहना चाहिए धर्म ही हमारा सच्चा साथी है जिसने देव शास्त्र गुरु की शरण पा ली उसके जीवन में कभी संकट के बादल नही आ सकते जो गुरु आज्ञा का पालन करता हैं वह जीवन में सुख शान्ति पाता हैं।
इस अवसर पर गुरु दर्शनार्थ हरदुआ, जवलपुर, जयपुर, इंदौर, भिंड आदि स्थानों पर भक्तगण पधारे।