तमिलनाडु में समय-समय पर मिलने वाली जैन विरासतों में आज एक ओर नाम जुड़ गया। तिरुवल्लुवर जिले के मयूर गाँव में जैन श्रावक जीवकुमार बी. ने एक प्रतिमा खोजी है, जिसे तालाब में फिंकवा दिया गया था, यह प्रतिमा लगभग 1500 साल पुरानी है, जब तमिलनाडु में जैन-धर्म का स्वर्णकाल था, यह वह दौर था जब तमिलनाडु के सभी लोग जैन थे।
शंकराचार्य के समय व बाद में शैव-वैष्णवो की एकता ने जैन-धर्म को तमिलनाडु से उखाड़ दिया, उस दौरान लाखों नहीं करोड़ों जैन धर्मान्तरित कर दिए गए, उनको शूद्र बनाकर जबरदस्ती मांसाहारी बनाया गया, जो धर्मान्तरित नहीं हुए उनको दर्दनाक मौत मिली, या जंगलों में भाग गए, साथ ही जैन अवशेष नदियों तालाबों में बहाएँ गए। यह समय-समय पर निकलने वाली विरासत उसी की निशानी है।
वर्तमान में तमिल जैनों की संख्या 80000 के करीबन रह चुकी है, वह भी बहुत ग़रीबी का जीवन जी रहे हैं, हमें चाहिए कि जैनधर्म को बचाने के लिए उसके प्रसार के लिए जो जैनधर्म से दूर हो गए उनकी पुनः घर-वापसी करवाए, इसके बिना भविष्य में उत्तर भारतीय व बाक़ी के जैनों की भी वही हालत होगी जो तमिल जैनों की हुई।