फाल्गुन वदी एकादशी पर विशेष

इसी तिथि पर मरुदेवी माता ने इस अवसर्पिणी काल में मोक्ष के द्वार खोले थे।

माता मरुदेवी का परिचय

मरुदेवी माता की उंचाई 500 धनुष यानि 1500 मीटर थी,  उनके पिता और माता का नाम श्रीकांत और मरूदेव था। मरुदेवी माता के पति का नाम नाभि था। मरुदेवी माता के पुत्र का नाम आदिनाथ था। इस काल में सबसे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रभु हुए हैं। प्रथम तीर्थंकर की माता बनने का सौभाग्य मरुदेवी माता को मिला।

जब आदिनाथ प्रभु दीक्षा लेते हैं तब मरुदेवी माता बहुत रोती हैं इससे उनकी आंखों में पडल जम जाते हैं। जब भी चक्रवर्ती भरत अपनी दादी मरुदेवी माता को मिलते तब मरुदेवी माता आदिनाथ प्रभु के समाचार पूछती। जब आदिनाथ प्रभु को पुरीमताल में केवलज्ञान होता है। तब भरत चक्रवर्ती मरुदेवी माता को कहते हैं कि में आपको आपके पुत्र ऋषभदेव की रिद्धि बताता हूं, उनको केवलज्ञान हुआ है,  वो अभी पुरीमताल में है।

भरत माता मरुदेवी को हाथी पर बिठाकर आदिनाथ प्रभु का जहाँ समवसरण था वहाँ ले जाते हैं। मार्ग में जाते समय भरत प्रभु के गुणों,  समवसरण की रिद्धि,  देवों की अनुपम सेवा के गुणगान करते हैं। वो सुनते-सुनते ही मरुदेवी माता को हर्ष के आंसु आते हैं और उनकी आंखों के पडल दूर हो जाते हैं। उस समय दूर से समवसरण की रचना और प्रभु की महत्ता को नजरों से निहारती हैं।

तब मरुदेवी विचार करती है कि अहो! इतनी समृद्धि के बावजूद पुत्र वीतरागी है। उनको मेरे से थोड़ा भी स्नेह नहीं है। अपनी आत्मा की साधना करना ही मेरे पुत्र का लक्ष्य है। जगत में कोई किसी का नहीं है। मैं क्‍यों पर की चिंता करुं?  ऐसे एकत्व भावना भाते शुक्ल ध्यान की श्रेणी में चढ़ते उनको केवलज्ञान हो जाता है। मरुदेवी माता बिना रजोहरण के सिद्ध-बुद्ध हो गयी और हाथी की अंबाडी पर ही वो अंतमुहूर्त (48 मिनट) में मोक्ष को प्राप्‍त करती हैं। फागुन वदी एकादशी के दिन माता मरुदेवी मोक्ष प्राप्‍त करती हैं। इन्द्रादि देवताओं ने माता मरुदेवी का निर्वाण महोत्सव किया।

माता मरुदेवी ने 65,000 पीढियां देखी थी। भाव की दीवाली मरुदेवी माता ने की। गृहस्थ स्त्रीलिंग में मरुदेवी माता सिद्ध हुईं। इस अवसर्पिणी काल में मोक्ष के द्वार मरुदेवी माता ने खोले।

पूर्व भव में मरुदेवी माता का नाम नंदाबाई सेठाणी था। मरुदेवी माता ने पूर्व भव में 60,000 साल तक शील का पालन किया था। पूर्व भव में 1 लाख वर्ष तक संयम का पालन किया था। मरुदेवी माता ने पूर्व भव में 11,00,407 मासक्षमण किये थे। रजोहरण लिये बिना माता मरुदेवी मोक्ष में गईं।

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