धरसेनसागर जी महाराज ने की गिरनार तीर्थ की 1008 वंदना सम्पन्न


जूनागढ़। प्रशान्त मूर्ति आचार्य शांतिसागर जी महाराज (छाणी) परम्परा के चतुर्थ पट्टाचार्य गिरनार गौरव जैनाचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती सुयोग्य शिष्य महातपस्वी 108 मुनिश्री धरसेन सागरजी महाराज ने अपनी मुनि दीक्षा के साढ़े चार वर्ष के अल्प समय में सिद्धक्षेत्र गिरनार पर्वत की सेसावन सहित पाँचों टोंकों की 1008 वन्दना पूर्ण की।


मुनिश्री ने अपने दीक्षागुरु गिरनार गौरव आचार्य श्री 108 निर्मलसागर जी महाराज से गिरनार वंदना का संकल्प लिया था। जिनशासन में शायद यह प्रथम अवसर है जब 69 वर्ष के एक दिगम्बर मुनिराज ने इतने अल्पसमय में प्रतिदिन करीब 21 हजार सीढ़ियां चढ़-उतर कर 1008 वन्दना पूर्ण कीं। ये चतुर्दिक् संघ एवं सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के लिए गौरव की बात है।


निर्मल ध्यान केन्द्र के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी सुमत भैया के माध्यम से विद्वत् परिषद् के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ने बताया कि जब मुनिश्री अपनी 1008वीं वंदना करके पर्वत से नीचे आ रहे थे तब क्षेत्र पर विराजमान मुनिश्री नयनसागर जी, मुनिश्री विश्वविजयसागर जी महाराज की अगुवाई में नागरिकों व संस्थाओं के पदाधिकारियों ने एकत्रित होकर पहाड़ की तलहटी से गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा के साथ प्रवास स्थल निर्मल ध्यान केन्द्र समोशरण तक लाए।


मुनि श्री धरसेनसागर जी की मुनिदीक्षा 9 जुलाई 2016 को गिरनार तीर्थक्षेत्र पर नेमिनाथ मोक्षकल्याणक लड्डू महोत्सव के पावन अवसर पर गिरनार गौरव आचार्य श्री 108 निर्मलसागर जी महाराज के कर कमलों द्वारा की गयी थी। दीक्षा लेने के बाद गुरु आज्ञा से मुनिश्री ने गिरनार क्षेत्र की यात्रा प्रारम्भ करने का संकल्प किया।

एक जनवरी 2017 से गिरनार यात्रा प्रारम्भ हुई। मुनिश्री प्रातः ठीक 4ः30 बजे गिरनार पर्वत यात्रा प्रारम्भ करते हैं, पाँचों टोंकों के दर्शन कर सहसावन स्थित चरणों के दर्शन कर करीब 9ः00 बजे तक समोसरण मंदिर तलहटी में नीचे पहुंच जाते हैं।

करीब 4 से 5 घंटे में यात्रा पूर्ण कर लेते हैं। प्रतिदिन करीब 21,000 सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में कोई रूकावट नहीं। पहाड़ पर रहने वाले सभी साधु-संत, डोलीवाले तथा निवासी लोग मुनिश्री को अच्छी तरह से जानते हैं।
डॉ. महेन्द्र कुमार जैन ‘मनुजद्ध

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