21वीं सदी के महान आचार्य परम पूज्य श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंदजी महामुनि राज की द्वितीय पुण्यतिथि 22 सितंबर 2021 दिन बुधवार को है। उनकी समाधि दिवस के अवसर पर उनके शिष्य परम पूज्य आचार्य श्रुतसागरजी जी मुनिराज के सानिध्य मे कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। यह कार्यक्रम श्री भरतक्षेत्र दिगंबर जैन मंदिर जोकि पावापुरी नजफगढ़ दिल्ली मे आयोजित किया गया है। आचार्य परम पूज्य श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंदजी महामुनि राज का जन्म कर्नाटक में 22 सितंबर 1895 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शांति सागर आश्रम से ली। इसके बाद उन्होंने 15 अप्रैल 1946 को क्षुल्लक दीक्षा ली।
परम पूज्य श्वेतपिच्छाचार्य सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनीराज का रविवार दिनांक 22/09/2019 को उत्तम समाधि मरण हो गया था.आचार्य श्री विद्यानंदजी मुनिराज प्रमुख विचारक, दार्शनिक, संपादक, संरक्षक, महान् तपोधनी, ओजस्वी वक्ता, प्रखर लेखक, शांतमूर्ति, परोपकारी संत थे। इन्होंने अपना समस्त जीवन जैन धर्म द्वारा बताए गए अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह के मार्ग को समझने व समझाने में समर्पित किया। भगवान महावीर के सिद्धान्तों को जीवन-दर्शन की भूमिका पर जीकर अपनी संत-चेतना को सम्पूर्ण मानवता के परमार्थ एवं कल्याण में स्वयं को समर्पित करके अपनी साधना, सृजना, सेवा, एवं समर्पण को सार्थक पहचान दी है।उनका नाम न केवल जैन साहित्य में अपितु सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में एक प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।आचार्य विद्यानंदजी अपनी कठिन दिनचर्या, संयम और तपस्या के बल पर इस युग के महान जैन संतों में गिने जाते हैं। अपना सम्पूर्ण भावी समय कठोर ध्यान और साधना को समर्पित करने के लिए इन्होंने अपने परम शिष्य आचार्य श्रुतसागरजी मुनिराज को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की। दिनांक 18 मार्च, 2018 को सारे विशेषणों से मुक्त होकर आचार्य विद्यानंदजी ने यह दिखा दिया कि साधना की भूमिका पर उपाधियां और पद कैसे छूटती हैं। सचमुच! यह घोषणा इस सदी के राजनेताओं के लिये सबक बनी जिनके जीवन में चरित्र से भी ज्यादा कीमती पद, प्रतिष्ठा, प्रशंसा और पैसा है।