1. तीर्थंकर 1008 शुभ लक्षणों से सहित होंते हैं।
2. तीर्थंकर का शरीर मल-मूत्र से रहित होता है।
3. तीर्थंकर के शरीर में पाया जाने वाला रक्त श्वेत होता है।
4. तीर्थंकर ‘ नम: सिद्धेभ्य:’ कहकर स्वयं दीक्षित होते हैं।
5. तीर्थंकर के गर्भ-जन्मादि के काल में देवतागण महोत्सव मनाते हैं वह ही कल्याणक कहलाते हैं।
6. तीर्थंकर जन्म से ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान व अवधिज्ञान के धारी होते हैं।
7. तीर्थंकर के भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि की पूर्ति सौधर्म इन्द्र आदि देवों के द्वारा की जाती है।
8. सभी तीर्थंकर आठ वर्ष की उम्र में देशव्रतीवत् हो जाते हैं।
9. तीर्थंकर सर्वांग सुन्दर होते हैं। उनकी सुन्दरता रागवर्द्धक नहीं, वैराग्य वर्द्धक होती है।
10. जन्म के समय नरक के नारकीयों को भी एक समय के लिए सुख की अनुभूति होती है।
11. तीर्थंकर को दीक्षा के उपरांत ही विपुलमति मन:पर्ययज्ञान की प्राप्ति होती है।
12. तीर्थंकर अपनी माता की इकलौती संतान होते हैं।
13. तीर्थंकर का रुप हमेशा कुमारावस्था जैसा होता है, उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आता।
14. तीर्थंकर दीक्षा के उपरांत केवलज्ञान होने तक मौन रहते हैं।
15. केवलज्ञान होने के बाद तीर्थंकर का उपदेश मुख से होता है परन्तु उनके मुख और होंठ आदि चलायमान नहीं होते। उनके द्वारा नि:सृत वाणी दिव्यध्वनि कहलाती है।
16. तीर्थंकर से अधिक जगत के किसी भी प्राणी में गुण, रुप और वैभव नहीं पाया जाता।
17. तीर्थंकरों को पसीना नहीं आता एवं दाढ़ी-मूंछ नही होती।
18. तीर्थंकर का पद सोलह कारण भावनाओं को भाने से होता है।
दिव्यध्वनि
1. तीर्थंकर की दिव्यध्वनि सभी आनंद देनी वाली होती है।
2. दिव्यध्वनि समस्त संदेह को दूर करने वाली होती है।
3. दिव्यध्वनि ग्रहस्थ एवं मुनि धर्म को समझाने वाली होती है।
4. दिव्यध्वनि ततत्व को उद्घाटित करने वाली होती है।
5. दिव्यध्वनि सभी जीवों को अपनी-अपनी भाषा में समझ में आ जाती है।
6. दिव्यध्वनि हित-मित और प्रिय होती है।
7. तीर्थंकर भगवान की वाणी लोगों का अज्ञानरुपी अंधकार दूर करके उन्हें सम्यक ज्ञान का बोध कराती है।
8. दिव्यध्वनि चारों दिशाओं में एक-एक योजन तक सुनाई देती है। (1 योजन = 12 कि.मी.)