- संग्रह नही दान कर अक्षय पुण्य संचय का पर्व है अक्षय त्रतीया🌻
भारतीय संस्कृति में दान का विषेश महत्व है। इष पर्व पर जैन परंपरानुसार श्रष्टी के आदि मे अंतिम मनु (कुलकर) नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव को हस्तिनापुर मे राजा श्रेयांश ने ऋषभदेव को इक्षु (गन्ने) का रस आहार के रूप मे दान कर इष पर्व का प्रचलन किया था। तभी से यह दिवष अक्षय त्रतीया के रूप मे प्रसिद्ध हुआ।
इस पर्व का महत्व वैदिक ग्रंथो मे भी समान रूप से वर्णित है भविश्य पुराण के अनुसार इष दिन थोडा या अधिक जो कुछ जितना भी दान दिया जाता है उषका अक्षय फल मिलता है।
इसी प्रकार बृहत्पराशर संहिता मे इष दिन जौ चना दूध गन्ने के रस दही चावल मिष्ठान आदि दान की बात कही गई है। भागवत पुराण भी दान से मन के संतोष और शुद्धी की बात कहता है।
आज के दौर मे हम देखते है कि इष दिन लोग स्वर्ण आदि कीमती धातुओं को क्रय कर संग्रह करने का प्रचलन बढा है। जबकि भविष्योत्तर पुराण स्वर्ण दान परंपरा का समर्थन करता है।
इष प्रकार यह पर्व संग्रह का नहीं दान देकर अक्षय पुण्य संचय का पर्व है।