विश्व मैत्री उद्घोषक भगवान महावीर स्वामी

विश्व मैत्री भावना के उद्घोषक सनातन श्रमण संस्कृति में चौबीस तीर्थंकर भगवंत हुए है।

जब – जब सृष्टि पर धर्म की ही हानि होती है , अज्ञान- अविद्या के वश होकर जगति के प्राणी सत्यार्प मार्ग से पतित हो जाते हैं । हिंसा , असत्य , चोरी , अब्रह्म, परिग्रह जैसे महापापों में लिप्त होकर दुर्गति के पात्र होते हैं ।

लोग प्राणी वध में धर्म मानने लगते हैं , तब तीर्थकर भगवान जन्म लेते हैं और वह विश्व कल्याण के लिए अहिंसा , सत्य अचौर्य , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह के सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर संसार के प्राणियों को क्षायिक अभय दान देते है ।

विश्वशांति हिंसा से नहीं , अपितु अहिंसा परम ब्रह्म की उपासना से ही संभव है । वर्तमान चौबीसी में तीर्थकर भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर हुए, उनकी जन्म जयंती है।  प्रथम गणतंत्र राज्य के रूप में कोई राज्य विश्व बसुन्धरा पर था तो भारत भूमि पर तो वह वैशाली गणतंत्र था । वैशाली वासोकुण्ड विदेह कुण्डग्राम कुण्डलपुर में तीर्थकर महाबीर स्मामी ने जन्म लेकर सम्पूर्ण- विश्व को स्याद्वाद -अनेकांत का दिव्य- उपदेश देकर भारत देश की गरिमा को वर्धमान किया है ।

तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के संदेश ही विश्व में शान्ति स्थापित करने में समर्थवान है | जीना हमारा अधिकार और प्राणिमात्र को जीने देना हमारा कर्तव्य है । सम्प्रति अहिंसा की पहचान भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों से है ।

:-  श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर

25 अप्रेल 2021

(जन्म जयन्ति )

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