क्षमा फूल है कांटा नहीं, क्षमा प्यार है चांटा नहीं: उत्तम क्षमा

उत्तम क्षमा धर्म – क्ष= पृथ्वी / पृथ्वी जैसे सहन करती है, उसी प्रकार समता स्वभाव से दूसरों के क्रोध को सहन करना क्षमा धर्म है। क्ष= नष्ट होना, मा= नहीं, जो नष्ट होने से बचाये वही उत्तम क्षमा धर्म है।

क्रोध के निमित्त उपस्थित होने पर भी जो महानुभाव उत्तम क्षमा भाव को धारण करता है उन श्रमण राज के उत्तम क्षमा धर्म होता है।

अथवा दुष्ट, अज्ञानी जीव गाली-निंदा, प्रताड़ना आदि करने पर भी जो समता भाव से सहन किया जाता है उसको उत्तम क्षमा कहते हैं। क्षुभित होने के कारण होते हुए भी एवं प्रतिशोध लेने की शक्ति होने पर भी क्षुभित नहीं होना ही उत्तम क्षमा है।

अपकारी के प्रति भी उपकार की भावना रखना, विपरीत कारण मिले, क्रोध नहीं करने की साधना को कहते हैं उत्तम क्षमा। किसी भी परिस्थिति में क्रोध अच्छा नहीं। क्रोध के आवेग में व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है हिताहित का विवेक खो देता है।

क्रोध एक तात्कालिक पागल पन है। जिसके बाद पश्चाताप शेष रह जाता है। तलवार उठाना वीरता नहीं तलवार छोड़ना  वीरता है। क्रोध करने से कोई महान नहीं होता, क्षमा से महानता मिलती है। क्रोध से दुश्मन को मारा जाता है क्षमा से दुश्मनी को मारा जाता है। दुश्मन को मारने से दुश्मन नहीं मरता। दुश्मनी को मारने से दुश्मन सदा के लिए समाप्त हो जाता है।

भगवान महावीर ने कहा कि क्रोध से भी ज्यादा खतरनाक बैर होता है। क्रोध आता है और चला जाता है और बैर जन्म जन्मांतर तक साथ जाता है। इसलिए क्रोध को कभी बैर मत बनने देना। क्रोध बैर बनता है जब आपस में बोलचाल बंद हो जाती है।

इसलिए कैसी भी परिस्थिति आजाये आदमी को बोलाचाली बंद नहीं करना चाहिये। वस यही बोलचाल क्षमा का एक रूप है। क्षमा मांगने की चीज नहीं, धारण करने की चीज है। क्षमा धारण करके किया गया क्रोध एक अभिनय होगा, पर क्रोध नहीं।

अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज

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